Self Made Destiny: Kiara Astrology

· Kiara Astrology
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E-book
217
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À propos de cet e-book

मैं, सोमवीर सिंह, अपने सभी पाठकों का दिल से अभिनन्दन करता हूँ l इस पुस्तक के माध्यम से आप सभी को ज्योतिष विद्या के मूल नियमों की जानकारी देने का प्रयास कर रहा हूँ l हमेशा से ही ज्योतिष विद्या का हमारे जीवन में बहुत महत्व रहा है l जो हमारे आने वाले समय की जानकारी हमें प्रदान करता है l अगर ज्योतष विद्या के सही नियमों को पढ़ा जाये या समझा जाये तो यह हमारे जीवन में बहुत ही लाभदायक सिद्ध होती है और हमारा जीवन जीने लायक बनाती है l                       

मेरे जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि मैं आम जनता के दुखों में काम आ सकूँ और उन्हें जीवन जीने की सही दिशा दिखा सकूँ l मेरा मानना है कि जिसके पास भी जन्म कुण्डली है उसके अंदर कहीं न कहीं एक ज्योतिषी छिपा हुआ है मैं उस ज्योतिषी को बाहर निकालना चाहता हूँ, जिस से वह स्वं अपनी कुण्डली देखना सीखे और सही उपाय अपना कर अपने जीवन को अच्छा बना सके जिससे उसे अल्पज्ञानी ज्योतिष/पंडित की सलाह की जरुरत न पड़े l

समाज में रत्नों को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां फैली हुई हैं l बहुत सारे लोग अपनी लग्न कुण्डली और राशि को देखकर ही रत्न धारण कर लेते हैं l यह बात पूर्णतः शास्त्र सम्वत नहीं हैं l जब तक गृह किस भाव में है, किस अवस्था में हैं, इस बात का सही विवेचन नहीं होता तब तक रत्न धारण नहीं करना चाहिए l रत्न कोई चमत्कार नहीं करते हैं, रत्न का काम होता है कि गृह से आने वाली किरणों/रश्मियों को शरीर में बढ़ाना l यदि आपने अपने मारक गृह का रत्न धारण किया हुआ है तो वह रत्न आपके शरीर में गृह से आने वाली नकारात्मक किरणों को बढ़ा देगा जिस से आपके शरीर में लम्बी चलने वाली बीमारियां, मान्सिक चिंता, काम न बनना, मृत्युतुल्य कष्ट आदि बढ़ जायेंगे                      

मैंने अक्सर देखा है कि काल-सर्प योग को लेकर भी लोगों के मनों में अनेक भ्रांतियां होती हैं और लोग महंगे - महंगे उपायों में पड़कर कष्ट भी झेलते हैं l यह पता होना आवश्यक है कि काल-सर्प योग के उपाय तभी करने चाहिए यदि राहु देवता या केतु देवता की कोई दशा या अन्तर्दशा चले l अन्यथा इसके उपायों की आवश्यकता नहीं होती l इतना ही नहीं, कई बार तो काल - मृता योग को ही काल - सर्प योग मान लिया जाता है l इस बारे में कुण्डली सावधानी से आंकी जानी चाहिए l                     

पितृ दोष के नाम पर भी समाज में कई भ्रम फैले हुए हैं l जो पितृगण अपनी सारी पूँजी और कमाई अपने बच्चों के लिए छोड़ गए, भला वे पितृ अपनी ही सन्तानों के लिए बुरा कैसे कर सकते हैं l उनके आशीर्वाद से तो सदैव वंशजों का भला ही हो सकता है l

कुण्डली का विश्लेषण सदैव ग्रहों के हिसाब से किया जाता है, नक्षत्रों के हिसाब से नहीं l रत्न धारण करने के लिए हमेशा लग्न - कुण्डली को देखा जाना चाहिए l वर्गीय - कुंडलियों के अनुसार रत्न नहीं डालने चाहिए l मैंने कई - कई लोगों को दूर-दूर जाकर महंगे-महंगे उपाय करते देखा है जैसे कि कालसर्प योग की पूजा के लिए नाशिक में जाते हैं l यह तोह अनावश्यक ही स्वं को कष्ट में डालना हुआ l यह समझ लेना चाहिए कि ईश्वर उपाय की मात्रा, धन की लागत या दूरी नहीं देखता l वह तो मन का भाव देखता है l उपाय श्रद्वापूर्वक किया जाना चाहिएl

आशा है कि इस पुस्तक के सभी पाठकगणों को मैं ज्योतिष विद्या के सही मार्ग की ओर ले जा पाउँगा l

Notes et avis

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À propos de l'auteur

Celebrity & Family Astrologer: Mr. Somvir Singh (B.Tech – HBTU Kanpur, M.Tech – IIT Roorkee, Expert in Kundali Analysis, Health Expert, Yog Karak & Marak grah Analysis, Gemstones Analysis, Matching with scientific reasons)

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