Vikas Niyam (Hindi edition): Aatmavikas Dwara Santushti Pane Ka Raaj

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4.6
18 reviews
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176
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विकास नियम
आत्मविकास द्वारा संतुष्टि पाने का राज़

बनाएँ विकास नियम को अपना आदर्श
विकास नियम हमारे चारों ओर काम कर रहा है I फिर चाहे वह शरीर का विकास हो, बुद्धि का विकास हो, शहर या देश एक विकास हो I यह नियम तो एक बुनियादी नियम है; यह पूर्णता की चाहत है I आइए, इस पुस्तक द्वारा विकास नियम को अपना आदर्श बना लें और विकास की नई ऊँचाइयों को छू लें I

विकास नियम हर इंसान और वस्तु में छिपी संभावनाओं को प्रकट करने का नियम है I यह आपकी संपूर्ण संतुष्टि की चाहत को पूरा करता है I इस नियम के ज़रिए आप जान सकते हैं कि :

• विकास नियम का महामंत्र क्या है
• विकास कि शुरुआत कैसे और कहाँ से करें
• विकास का विकल्प कैसे चुनें
• विकास पर सदा अपनी नज़र कैसे टिकाए रखें
• आत्मविकास के स्वामी कैसे बनें
• इंसान की अंतिम विकास अवस्था क्या है
• स्वयं को और अपने मन की बनाई गई सोच को कैसे जानें

विकास नियम के पन्नों में ऐसी हे कई बातों के सरल जवाब छिपे हैं, इन्हें पढ़ना शुरू करें - आज से, अभी से ...

Ratings and reviews

4.6
18 reviews
Mangu Singh
January 18, 2017
समाज विकास के लिए संगठन केसदस्य ओर जनता के लिए क्या क्या नियम होने चाहिये, कृपया मुझे इस बुक को चुननै मै मदद करै
26 people found this review helpful
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Debanjan Paul
July 8, 2017
Dhanyawad Sirshree....Happy Thoughts
14 people found this review helpful
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Ashit Gandhi
April 28, 2021
One of the finest self help book
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About the author

सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।

उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।

सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’

सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अ‍ॅण्ड सन्स इत्यादि।

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