शंका समाधान: Shanka Samadhan

· Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
4.7
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इस कृति में अनेक प्रश्नों का समाधान किया गया है जो सामाजिक बिखराव के उन्मूलन तथा धार्मिक भ्रान्तियों के निवारण में सहायक है। इसमें भजन किसका करे, कर्मकाण्ड यज्ञ (हवन), ब्रह्मचर्य, गायत्री, युग धर्म, अहिंसा, पाप और पुण्य, सनातन धर्म, वर्ण व्यवस्था, विप्र, आर्य, गोरक्षा, सती, अवतार और दान इत्यादि की स्पष्ट व्याख्या दी गई है। 

Ratings and reviews

4.7
145 reviews
rajesh raguvanshi
August 30, 2020
अद्भुत हैं भ्रांतियों का निवारण होता है। अज्ञानता के बादल छट जाएंगे। जरूर पढ़ें, सनातन- सत्य का मार्गदर्शन हो जाएगा।
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Ajay Singh
October 10, 2019
Puri shanka ka samadhan is book me hai om shri sadgurudev bhagwan ki jai . Swamiji ke charnoo me Anant koti sastang dandvat
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Stark
August 31, 2020
It's is something different from,our daily hustle bustle which will help to understand that macanism of world and our society.
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About the author

यथार्थ गीता के प्रणेता

योगेश्वर सद्गुरु श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज।।

जीवन परिचय

स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्य की शोध में इतस्ततः विचरण करते तेईस वर्ष की आयु में नवम्बर 1955 ई. को परमहंस स्वामी श्री परमानन्दजी की शरण में आये। श्री परमानन्द जी का निवास चित्रकूट, अनुसूइया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) के घोर जंगल में रहा है, जो हिंसक जीव-वस्तुओं का निवास है। ऐसे निर्जन अरण्य में बिना किसी व्यवस्था के उनका निवास, घोषित करता है कि वे एक सिद्ध महापुरुष थे।

पूज्य परमहंस जी को आपके आगमन के संकेत वर्षों पूर्व ही मिलने लगे थे। जिस दिन आप आये परमहंस जी को ईश्वरीय निर्देश मिला, जिसे भक्तों से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बालक भवसरिता से पार जाने के लिए विकल है, आता ही होगा। आप पर दृष्टि पड़ते ही उन्होंने बताया कि वह बालक यही है। गुरू निर्देशन में चलते हुए, साधना के चरमोत्कर्ष पर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन कर, आप उसी परमात्म भाव को प्राप्त महापुरुष हैं।

आपकी शैक्षिक उपाधियाँ तो कोई भी नहीं, लेकिन सद्गुरु- कृपा से पूर्णता प्राप्त कर मानवमात्र के कल्याण में रत हैं... ‘सर्वभूतहितरतं।’ लेखन को आप साधन-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं किन्तु गीता भष्य ‘यथार्थ गीता’ के प्रणयन में ईश्वरीय निर्देशन ही निमित्त बना।

भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृत्तियाँ शान्त हो चुकी हैं, केवल छोटी-सी एक वृति शेष है, गीताज्ञान के आशय का यथावत् पुनप्रकाशन! पहले तो आपने इस वृत्ति को भजन से काटने का प्रयास किया किन्तु...भगवान के आदेशों का मूर्तरूप है- ‘यथार्थ गीता’।

यथार्थ गीता के रचना काल में भाष्य में जहां भी त्रुटि होती, भगवान उसे सुधार देते थे! पूज्यश्री की ‘स्वान्तः सुखाय’ यह कालजवी कृति सर्वान्तः सुखाय हो चली है। आर्यावर्त भारत ही नहीं विश्व के मानवमात्र के कल्याण में रत है, संलग्न है।

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