Titli

· Rajkamal Prakashan
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प्रसादजी के नाटकों में स्कंदगुप्त का विशिष्ट स्थान है। इसका कथानक यद्यपि उनके अन्य नाटकों के समान ऐतिहासिक ही है लेकिन संघर्ष और अंतर्द्वन्द्व की अवतारणा पहली बार इसी नाटक में हुई है। प्रसादजी ने यहाँ ऐतिहासिक तथा राजनैतिक घटनाओं का योग पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन-घटनाओं से किया है और इस प्रकार सारा नाटक दो स्तरों पर चलता है। इससे न केवल नाटक में जबर्दस्त अंतर्द्वन्द्व पैदा हुआ है बल्कि पात्रा भी अधिक मानवीय होकर उभरे हैं, उनका स्वतंत्रा अस्तित्व विकसित हो सका हैं आचार्य नंददुलारे वाजपेयी के शब्दों में ‘चरित्रा-निर्माण में मानव स्वभाव का सहज और कलात्मक प्रदर्शन हुआ है।’ विजया तथा देवसेना के चरित्रा-निर्माण में यह विशेषता द्रष्टव्य है। इन दोनों चरित्रों में प्रसादजी का कविसुलभ व्यक्तित्व प्रतिफलित हुआ है जिसके कारण ये दोनों चरित्रा हमारे मन पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। पुरुष पात्रों में स्कंदगुप्त, जो नाटक का नायक भी है, इतने सशक्त रूप में सामने आता है कि उसे भुला पाना सम्भव नहीं होता।

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Vaibhav Anand
6 June 2014
PU
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About the author

जन्म : 30 जनवरी 1890, वाराणसी (उ.प्र.)। स्कूली शिक्षा मात्र आठवीं कक्षा तक। तत्पश्चात् घर पर ही संस्कृत, अंग्रेजी, पालि और प्राकृत भाषाओं का अध्ययन। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण-कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय। पिता देवीप्रसाद तम्बाकू और सुँघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार 'सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध था। पिता के साथ बचपन में ही अनेक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की यात्राएँ कीं। छायावादी कविता के चार प्रमुख उन्नायकों में से एक। एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। 48 वर्षों के छोटे-से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबन्ध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ। प्रमुख रचनाएँ : झरना, आँसू, लहर, कामायनी (काव्य); स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जनमेजय का नागयज्ञ, राज्यश्री (नाटक); छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इन्द्रजाल (कहानी-संग्रह); कंकाल, तितली, इरावती (उपन्यास)। 14 जनवरी, 1937 को वाराणसी में निधन।

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