Bharat Ek Aahat Sabhyata: Bestseller Book by V S Naipaul: Bharat Ek Aahat Sabhyata

· Prabhat Prakashan
3.9
19 reviews
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कहा जाता है कि सत्रह वर्ष के एक बालक के नेतृत्व में अरबों ने सिंध के भारतीय राज्य को रौंदा था। सिंध आज भारत का हिस्सा नहीं है, उस अरब आक्रमण के बाद से भारत सिमट गया है। (अन्य) कोई भी सभ्यता ऐसी नहीं, जिसने बाहरी दुनिया से निपटने के लिए इतनी कम तैयारी रखी हो; कोई अन्य देश इतनी आसानी से हमले और लूटपाट का शिकार नहीं हुआ, (शायद ही) ऐसा कोई और देश होगा, जिसने अपनी बरबादियों से इतना कम (सबक) सीखा होगा।

भारत मेरे लिए एक जटिल देश है। यह मेरा गृह देश नहीं है और मेरा घर हो भी नहीं सकता, लेकिन फिर भी न मैं इसे खारिज कर सकता हूँ, न इसके प्रति उदासीन हो सकता हूँ। मैं इसके दर्शनीय स्थलों का पर्यटक मात्र बनकर नहीं रह सकता। मैं एक साथ इसके बहुत निकट और बहुत दूर भी हूँ। लगभग सौ साल पहले मेरे पूर्वज यहाँ के गंगा के मैदान से पलायन कर गए थे और दुनिया के उस पार त्रिनिडाड में उन्होंने अन्य लोगों के साथ जो भारतीय समाज बनाया था, और जिसमें मैं बड़ा हुआ था, वह समाज उस भारतीय समाज से कहीं अधिक आपस में घुला-मिला था, जिससे सन् 1883 में दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी का साक्षात्कार हुआ था।

सौ वर्षों का समय मुझे अनेक भारतीय धार्मिक रुझानों से विलग करने के लिए पर्याप्त था और इन रुझानों को समझे बिना भारत की व्यथा को समझ पाना असंभव था, आज भी असंभव है। भारत की विचित्रता से तालमेल बिठाने, यह जानने में कि वह क्या है जो मुझे इस देश से अलग करता है और यह समझने में कि नए विश्व के एक छोटे और दूरस्थ समुदाय के मेरे जैसे व्यक्ति के भारतीय रुझान उन लोगों के रुझानों से कितने अलग हैं, जिनके लिए भारत आज भी अपनी समग्रता में है, काफी समय लगा।

—इसी पुस्तक से

Ratings and reviews

3.9
19 reviews
Ravi Negi
November 16, 2020
In this book, the topic of how India's civilization was destroyed is explained in detail and in it completely
6 people found this review helpful
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Naresh Jain
July 27, 2023
हिन्दी अनुवाद अच्छा नहीं है.
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Golu Singh
December 9, 2022
very good
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About the author

सर वी.एस. नायपॉल सर विदियासागर सूरजप्रसाद नायपॉल का जन्म सन् 1932 में त्रिनिडाड में हुआ। उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में चार वर्ष बिताए और लंदन में रहकर सन् 1954 से लेखन प्रारंभ किया। उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं—‘द मिस्टिक मेस्योर’, ‘द सफरेज ऑफ एलवीरा’, ‘मिगेल स्ट्रीट’, ‘अ हाउस फॉर मि. बिस्वास’, ‘मि. स्टोंस एंड द नाइट्स कंपेनियन’, ‘द मिमिक मेन’ और ‘अ फ्लैग ऑन दि आइलैंड’। उनके चार उपन्यास हैं—‘गुरिल्लाज’, ‘अ बेंड इन द रिवर’, ‘दि एनिग्मा ऑफ अराइवल’, ‘अ वे इन द वर्ल्ड’, ‘मैजिक सीड्स’ (शीघ्र प्रकाश्य)। ‘एन एरिया ऑफ डार्कनेस’, ‘इंडिया : अ वूंडेड सिविलाइजेशन’ और ‘इंडिया: अ मिलियन म्यूटिनीज नाउ’ भारत पर लिखी उनकी प्रसिद्ध तीन पुस्तकें हैं। नए विश्‍व इतिहास का उत्कृष्‍ट अध्ययन ‘द लॉस ऑफ इल डोराडो’ सन् 1969 में और उनके लंबे लेखों का संग्रह ‘दि ओवरक्राउडेड बैराकून’ 1972 में प्रकाशित हुआ। ‘द रिटर्न ऑफ एवा पेरॉन’ अर्जेंटीना, त्रिनिडाड और कांगो की उनकी यात्राओं पर आधारित है। ‘फाइंडिंग द सेंटर’ में एक लेखक के रूप में उनके उद‍्भव का वर्णन है। सर नायपॉल को सन् 1971 में ‘बुकर पुरस्कार’, 1986 में ‘टी.एस. इलियट पुरस्कार’, 1990 में ‘नाइटहुड पुरस्कार’, 1993 में ‘डेविड कोहेन ब्रिटिश लिटरेचर पुरस्कार’ तथा 2001 में साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए विश्‍व के सर्वोच्च पुरस्कार ‘नोबेल पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया।

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