लिखते वक्त मेने अपने आप को सबसे जादा हल्का महसूस किया हैं। मेरे लिऐ लिखते रहने का एहसास एकदम वैसा ही है जैसे किसी रोते हुऐ बच्चे को उसका मनपंसद खिलौना देकर चुप करा देना। एक अंतराल के बाद मैंने अपने लेखन को किताब की शक्ल दी है। मेने अपनी इस कहानी मे समाज के बदलाव और उस बदलाव के साथ बढ़ती आजकल के नये विचारों वाली युवापीढ़ी के मेलजोल को उकेरा है।