डॉ० भीमराव रामजी अम्बेडकर और समान नागरिक संहिता: Dr Bhimrao Ramji Ambedkar and Uniform Civil Code

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· Book Bazooka Publication
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335
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आज जब समान नागरिक संहिता को लेकर एक बार फिर एक चर्चा आम है ऐसे में जनमानस के भीतर मन में ये प्रश्न पैदा ज़रूर होता है कि आख़िर कर पूज्ये बाबा साहब अम्बेडकर का समान नागरिक संहिता पर क्या विचार था। ये बताना आज इसलिए भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि देश में कुछ लोग डॉ.अम्बेडकर को समान नागरिक संहिता का विरोधी भी बताने से नही चूकते और ना ही मीम-भीम गठबंधन की वकालत ही करने से। डॉ.अम्बेडकर आजादी के समय से ही भारत में समान नागरिक संहिता की वकालत करते रहे, तब से लेकर आज तक भारत में समान नागरिक संहिता की मांग समय-समय पर होती रही हैं।हम देखे तो हिन्दू कोड बिल की वकालत डॉ.अम्बेडकर इस लिए कर रहे थे क्योंकि वे मानते थे कि हिंदू समाज में लाख कुरुतिया है लेकिन हिंदू समाज इसमें उदार है कि वो अपने रिलिजन में बदलाव को स्वीकृति देता है। हिन्दू समाज सुधार के साथ-साथ चलता है, वही दूसरी तरफ़ मुस्लिम समाज सदैव से समाज सुधार का विरोधी रहा है। सभी रिलिजन की महिला एक जैसी है लेकिन फिर भी बदलाव का पहला प्रयास वे हिंदू समाज में हिंदू कोड बिल के माध्यम से लाना चाहते थे। हम सभी को ये विदित है कि डॉ.अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल पर ही इस्तीफ़ा दिया था। लेकिन समय के साथ हिंदू कोड बिल कई हिस्सों में संसद में पारित भी किया गया। बाबा साहब अम्बेडकर हिंदू महिलाओं के तर्ज़ पर ही मुस्लिम महिलाओं को भी समान नागरिक सहिंता के माध्यम से मुस्लिम परंपराओं से मुक्त करना चाहते थे। इसलिए वे समान नागरिक आचार सहिंता को देश में लागू करवाना चाहते थे। लेकिन आजादी के इतने वर्षों में इस पर शायद ही कभी बड़ी गम्भीर चर्चा हुई होगी। हाँ अगर हम आज की वर्तमान सरकार को देखे तो उसके कुछ कदम समान नागरिक संहिता को लेकर सकरात्मक ज़रूर दिखते है। समाज में समान नागरिक संहिता पर चर्चा हो इस हेतु को ध्यान में रखते हुए “स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज”, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के “तुलनात्मक अध्ययन एवं राजनीति सिद्धान्त केंद्र” की तरफ से एक “दो-दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन” का आयोजन 25-26 फरवरी, 2020 को किया गया। इस सम्मलेन में अनेक विद्यार्थियों, शोध छात्रो ने अपने अपने लेख प्रस्तुत किये, इन लेखों का संयुक्त रूप इस पुस्तक को कहा जा सकता हैं। इन लेखो का प्रस्तुतीकरण तथा इनमे उठाये गए सवाल बहुत ही प्रासंगित प्रतीत होते हैं। जब समानता का क़ानून भारत में प्रचलित हैं तो सभी के लिए समान कानून क्यों नहीं? क्या समानता सिर्फ कुछ तबकों के लिए ही सीमित हैं? ऐसे अनेक प्रश्न इन लेखो को और भी प्रासंगिक बना देते हैं। इस पुस्तक में इसी तरह के कई प्रश्नों का हल खोजने का प्रयास किया गया हैं। हम बुक बजुका प्रकाशन के भी बहुत आभारी हैं जिन्होंने इस पुस्तक को आम जनमानस तक पहुचाने में हमारी मदद की हैं। इन लेखों की भाषा एवं संदर्भो आदि के लिए लेखक ही स्वयं ज़िम्मेदार है, प्रकाशक एवं सम्पादक नही।


सम्पादकीय समूह

डॉ० प्रवेश कुमार

डॉ० भूपेंद्र भारती

डॉ० गजेन्द्र

विकास सिंह गौतम

अवधेश कुमार सिंह 


Ratings and reviews

5.0
23 reviews
rasika verma
August 20, 2023
This book is very knowledgeable Thanks
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Ravinder Bharti
July 26, 2022
Such an excellent and brilliant insides
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Sandeep Barman
April 23, 2024
verry good book
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