तन-मन को बर्बादी देकर.
धन को देती दीवाला
मेरी भारत मातृ-भूमि से
हो मदिरा का मुँह काल
मधुशाला परिवर्तित होकर,
शिशु शाला का ले-ले रूप
साकी बाला भी बन जाये,
किसी व्यथित की मधुबाला ।।
-"व्यथित"
सुरा श्रौर सुन्दरी दो तथ्य है। उर्दू के प्रसिद्ध हालावादी शायर उमर खय्याम की रूबाइयों से प्रेरणा लेकर महाकवि बच्चन ने सूफी ख़यालो में ‘मधुशाला‘ काव्य की रचना कर इश्क-मजाजी एवं इश्क-हकीकी का प्याला पाठकों को पिलाया है। सुरा पर लिखी हुई यह काव्य-रचना-हाला, प्याला, मधुशाला तीन प्रतीकों की पुनरावृति को लेकर एक श्रद्वितीय रचना है। इसी प्रकार मैंने भी चैथा प्रतीक ‘मधुबाला‘ जोड़कर इसी छंदमाला में सुरा और सुन्दरी पर ‘‘मधुबाला‘‘ काव्य की रचना की है, जो राष्ट्र को सादर समर्पित कर रहा हूँ।
हमारी सरकार शराब-बन्दी सख्ती से लागू करने के इरादे में है। यह मानव-स्वभाव है कि वह एक दुव्र्यसन तभी छोडता है, जब तक उसे उससे बेहतर किसी अन्य व्यसन की ओर न मोड जाय। इस काव्य-पुस्तक मे मैंने मयखाने की ओर जाते हुए शराबी का मार्ग रोककर उसे सलाह दी है कि उसकी पत्नी या प्रेमिका के रोम-रोम में मयखाने का आनन्द जब उसे सहज ही में प्राप्त है, तो वह शराबखाने की ओर बर्बाद होने क्यों जा रहा है?
काव्य-सरोवर में गहरा गोता लगाने वाले पाठक इश्क मजाजी के साथ-साथ इश्क हकीकी का आनन्द इस काव्य-रचना से ले सकेंगे। काव्यामृत का पान कर देश में शराबियों को संख्या यदि 1ः भी घटी या नये इरादे से जाने वाला गुमराही नागरिक अपना मार्ग मोड़कर अपने घरू-मयखाने में वापिस आ गया, तो मैं समझूँगा
मेरा प्रयास सफल है, अन्यथा नहीं।
-दामोदरलाल जोशी “व्यथित”