रामकृष्ण मठ तथा मिशन के केन्द्रों में इस संकीर्तन को प्रारम्भ हुए एक शताब्दी पूरी हो चुकी है । इसी तथ्य को ध्यान में रखकर रायपुर के रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम से प्रकाशित होनेवाली ‘विवेक-ज्योति’ मासिक के सम्पादक स्वामी विदेहात्मानन्द ने प्रामाणिक सामग्री के आधार पर एक प्रबन्ध लिखा, जो उपरोक्त पत्रिका के नवम्बर 2011 से मार्च 2012 के पाँच अंकों के प्रकाशित हुआ । इसी लेखमाला को संकलित करके हमने वर्तमान पुस्तिका का रूप दिया है । संस्कृत में व्युत्पत्ति शास्त्र के अनुसार कीर्त संशब्दने — कीर्तन उच्च स्वर में शब्द करने के अर्थ में प्रयुक्त होता है । जब अनेक लोग मिलकर कीर्तन करें, तो वह संकीर्तन कहलाता है — संघीभूय कीर्तनं संकीर्तनम् । श्रीमद्-भागवत में भक्ति के नौ प्रकार बताये गये हैं — भगवान के नाम तथा गुणों का श्रवण, कीर्तन, स्मरण, चरणसेवा, पूजा, वन्दना, दास्य, सौख्य और आत्मनिवेदन — श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ (7/5/23) वेदान्त के समान ही भक्तिमार्ग में भी श्रवण ही सर्वप्रथम साधन है । इसमें श्रवण का अर्थ है — भगवान के नाम, रूप, लीला तथा गुणों का श्रवण करना और उनका ‘कीर्तन’ करना — यह द्वितीय साधन है । देवर्षि नारद भी अपने भक्तिसूत्र (80) में कहते हैं — स कीर्त्यमान: शीघ्रमेवाविर्भवति अनुभावयति च भक्तान् — अपना कीर्तन किये जाने पर भगवान शीघ्र ही प्रकट हो जाते हैं और भक्तों को अपने स्वरूप का अनुभव कराते हैं ।