श्री (स्वर्गीय) दत्ताराम पोळ जो कि विवेकानन्द केन्द्र के वानप्रस्थी कार्यकर्ता रह चुके हैं, अन्य संगठनात्मक गुणों के साथ विभिन्न खेल सीखने के माध्यम से शिविरार्थियों में उनकीछाप विशेष रूप से थी ।
वे वृद्धावस्था में भी युवा का जोश रखते थे और युवाओं में विशेषरूप से प्रचलित थे । यह पुस्तक 'क्रीड़ा योग' उन्हीं की देन है - जिन खेलों से न केवल शरीर ही चुस्त होगा बल्कि मन भी आनन्दित होगा ।