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हम दोनो हैं एक प्रिये,यह शीर्षक एक ऐंसी भावना को दर्शाता है जिसमे दो इंसान सदैव एक दूसरे के साथ चलते हैं, हाँ कुछ दूरी होती है लेकिन आजीवन उनकी यात्रा एक दूसरे के साथ एक दूसरे के एहसासों और यादों के साथ ही चलती है, उनके भीतर का प्रेम और एक दूसरे के लिए समर्पण कभी खत्म नही होता, हाँ अब इसे तकदीर कहें या जमाने के कायदों की बाधा जहाँ दो व्यक्तित्व और एक अस्तित्व जैसा प्रेम होने के बाबजूद भी वह कभी मिल नही पाते,लेकिन उनके भीतर का अनंत प्रेम उन्हे कभी अलग भी नही होने देता, अधिकांश प्रेम कहानियाँ इसी तरह अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं, इस काव्य संग्रह मे शामिल की गई कविताएँ, शायरी, गीत, ग़ज़ल किसी योजना के साथ लिखी गई नही अपितु वास्तविक परिस्थितियों से जूझते हुए उन भावनाओं की अभिव्यक्ति है जो अब तक अव्यक्त रही है।
वैसे तो मेरे लेखन की शुरुआत बचपन मे विधालय के समय ही हो गई थी प्रारंभ मे ओज रस की कविताएँ लिखते हुए अचानक मेरी कलम ने श्रृंगार रस का दामन भी थाम लिया और जीवन मे घटित होने वाली घटनाओं, प्रेम,मिलन बिछोड़, दर्द ,आँसू, और इन सबके बीच भी प्रेम की पूर्णता की अनुभूति ही इन कविताओं के अंतस मे ऐंसे भावों को जन्म देती है , जिससे की यह काव्य रचनाएँ सरल किंतु प्रभावी हो जाती हैं, शोशल मीडिया से लेकर काव्य आयोजनों मे कविता पढ़ने के बाद अब यह काव्य कृति आप सभी पाठकों को समर्पित करते हुए गर्व एवं हर्ष अनुभव कर रहा हूँ तो आत्मीय पाठकों इस काव्य संग्रहा को अवश्य पढ़े एवं किसी प्रकार के सुझाव, आपत्ति या सुधार हेतु इस नंबर पर हमे सूचित करें। -9806127070
नाम - ललित श्रीवास्तव (शब्दवंशी)
पिता - श्री कैलाश श्रीवास्तव
माता - श्रीमती अलका श्रीवास्तव
कार्य - पत्रकारिता
संपादक -अमोघ सत्य (साप्ताहिक समाचार पत्र
जन्म भूमि - कंदेली नरसिंहपुर
जिला - नरसिंहपुर मध्यप्रदेश 487001
संपर्क -9806127070
प्रिय पाठकों, मै एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला व्यक्तित्व हूँ, जहाँ बचपन से ही परिवार द्वारा मिली प्रेम और स्वाभिमान की शिक्षा ने मेरे व्यक्तित्व को एक सकारात्मक दिशा दी, वैसे तो बचपन से ही अनेकों विपरीत परिस्थितियों एवं अप्रिय हादशों से गुजरा हूं किंतु हालातों के हंटर से मैने स्वयं को टूटने नही दिया, मेरे व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों ने मुझे वीर रस और देशभक्ति की ओर आकर्षित किया, जिसके कारण मैने विधालायीन समय मे ही काव्य की ओर कदम बढ़ाया और जब एक हाथ मे वीर रस लेकर कवियाताएँ लिख ही रहा था के मेरे जीवन मे प्रेम ने दस्तक दी और मेरे दूसरे हाथ को श्रृंगार रस ने थाम लिया,प्रेम यात्रा के दौरान मेरे द्वारा अनुभव किये गए अनंत सुख,दर्द, तड़प, जुदाई, फिर भी अपने साथी से अनन्यता का भाव ही मेरी कविताओं का आधार है, मेरा कार्य धर्म तो पत्रकारिता रहा लेकिन काव्य सदा से ही मेरी अंतरात्मा की आवाज बना रहा, हालांकि इसे बतौर सुकून ही मैने धारण किया, किंतु अब जबकि कविताओं का एक खजाना अपनी कलम से अर्जित कर चुका हूँ तो इसे पाठकों तक पहुँचाना मैने अपना दायित्व समझा, यदा कदा मेरी कविताएँ समाचार पत्रों एवं काव्य आयोजनों के माध्यम से श्रोताओं को समर्पित करता रहा हूँ किंतु अब एक काव्य कृति के रूप मे मेरी पहली किताब आपको समर्पित कर रहा हूँ, मुझे उम्मीद है की मेरे वास्तविक अनुभव से उपजे मेरे एहसासों का शब्द रूपांतरण आपको पसंद आएगा, मेरी काव्य यात्रा मे सहयोगी रहे सभी साथियों एवं आप सभी को हृदय से धन्यवाद करता हूँ।