स्वामीजी ने अपने अनेक उत्कृष्ट गुणों के लिये अपनी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी को ही श्रेय दिया है । इन युगनायक संन्यासी ने अपने समस्त सांसारिक बन्धन तोड़ डाले थे, परन्तु अपनी माता के नि:स्वार्थ स्नेहपाश को वे कभी तोड़ नहीं सके थे । स्वामीजी की प्रात:स्मरणीय माता कुछ ऐसे उदात्त गुणों की जीवन्त प्रतिमूर्ति थीं, जो चिर काल से भारतीय संस्कृति के आधार-स्तम्भ बने हुए हैं । उनका जन्म एक सुसम्पन्न उच्च कुल की इकलौती कन्या के रूप में हुआ और विवाह के उपरान्त कलकत्ता हाइकोर्ट के प्रसिद्ध वकील श्री विश्वनाथ दत्त की सहधर्मिणी होकर वे एक संयुक्त परिवार में आयीं । उन्होंने अपनी प्रत्येक सन्तान को सनातन नैतिक आदर्शों तथा उच्च शिक्षा के द्वारा प्रशिक्षित करके सच्चा मनुष्य बनाया । इसी क्रम में स्वामी विवेकानन्द के समान एक लोकोत्तर विभूति का निर्माण करके उन्हें विश्व-ब्रह्माण्ड की सेवा में समर्पित करना — उनका एक कालजयी अवदान है । सर्वसंग-परित्यागी भगवत्पाद श्री शंकराचार्य के समान ही हिन्दू धर्म तथा वैदिक तत्त्वज्ञान की युगानुरूप व्याख्या देकर सम्पूर्ण जगत् में प्रचारित करनेवाले स्वामी विवेकानन्द की मातृभक्ति हम सभी के लिये चिन्तनीय तथा अनुकरणीय है ।