वीर बालक (Hindi Sahitya): Veer Balak (Hindi Stories)

·
· Bhartiya Sahitya Inc.
4.6
11 reviews
Ebook
47
Pages
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About this ebook

गीता प्रेस से प्रकाशित 'कल्याण' के 'बालक-अंक' में प्रकाशित 19 वीर बालकों के चरित्र इस पुस्तक में प्रस्तुत कर रहे हैं। ये चरित्र अपूर्व आत्मत्याग तथा बलिदान के सजीव चित्र हैं। आशा है इन्हें पढ़कर बच्चों एवं बड़ों में बलिदान और त्याग की भावना जाग्रत होगी। -हनुमान प्रसाद पोद्दार

Ratings and reviews

4.6
11 reviews
Dhawan Gupta
December 24, 2019
As a kid, I had read it countless times. It is Among the Best books for kids. Till today, of all the qualities I cherish and have, Bravery is the most distinguished part of my personality. And, this book has a great role in ingraining it in me, deep, from the childhood.
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rupesh chopra
June 3, 2019
Great book. Great writer. Ultimate. Everybody should read.
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Pharmaceuticals Pharma
January 30, 2015
Veer balak is a great book for everyone
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About the author

हनुमान प्रसाद पोद्दार
(1892 ई - 22 मार्च 1971)

पोद्दार जी का नाम गीता प्रेस स्थापित करने के लिये भारत व विश्व में प्रसिद्ध है। गीता प्रेस उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है। उनको प्यार से भाई जी कहकर भी बुलाते हैं।

भारतीय पंचांग के अनुसार विक्रम संवत के वर्ष 1949 (सन् 1892 ई) में अश्विन कृष्ण की प्रदोष के दिन उनका जन्म हुआ। इस वर्ष यह तिथि शनिवार, 6 अक्टूबर को है। राजस्थान के रतनगढ़ में लाला भीमराज अग्रवाल और उनकी पत्नी रिखीबाई हनुमान के भक्त थे, तो उन्होंने अपने पुत्र का नाम हनुमान प्रसाद रख दिया। दो वर्ष की आयु में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो जाने पर इनका पालन-पोषण दादी माँ ने किया। दादी माँ के धार्मिक संस्कारों के बीच बालक हनुमान को बचपन से ही गीता, रामायण वेद, उपनिषद और पुराणों की कहानियाँ पढ़न-सुनने को मिली। इन संस्कारों का बालक पर गहरा असर पड़ा। बचपन में ही इन्हें हनुमान कवच का पाठ सिखाया गया। निंबार्क संप्रदाय के संत ब्रजदास जी ने बालक को दीक्षा दी।

भाईजी ने अपने जीवन काल में गीता प्रेस गोरखपुर में पौने छ: सौ से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित की। इसके साथ ही उन्होंने इस बात का भी ध्यान रखा कि पाठकों को ये पुस्तकें लागत मूल्य पर ही उपलब्ध हों। कल्याण को और भी रोचक व ज्ञानवर्धक बनाने के लिए समय-समय पर इसके अलग-अलग विषयों पर विशेषांक प्रकाशित किए गए। भाई जी ने अपने जीवन काल में प्रचार-प्रसार से दूर रहकर ऐसे ऐसे कार्यों को अंजाम दिया जिसकी बस कल्पना ही की जा सकती है। 

22 मार्च 1971 को भाई जी ने इस नश्वर शरीर का त्याग कर दिया और अपने पीछे वे `गीता प्रेस गोरखपुर' के नाम से एक ऐसा केंद्र छोड़ गए, जो हमारी संस्कृति को पूरे विश्व में फैलाने में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

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