संन्यास के पूर्व उन्होंने ईश्वर की खोज में उन्हीं पर निर्भर होकर एक अकिंचन परिव्राजक के रूप में काफी भ्रमण किया था । उनके अनुभवों से कदाचित् अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिले तथा उपकार हो, इस दृष्टि से उन्होंने ‘प्रभु परमेश्वर जब रक्षा करें’ शीर्षक से अपनी भ्रमण-गाथा लिखी।