बड़ी बड़ी जटिल दार्शनिक समस्याओं पर विचार और उनके विषय में निष्कर्ष प्रतिपादित करना इस पुस्तक का उद्देश्य नहीं। जिनके अन्त:करण में धर्मभाव तथा आध्यात्मिक प्रेरणा के अभ्युदय के फलस्वरूप, इस विषय में कुछ प्रत्यक्ष उपलब्धि की तीव्र आकांक्षा जाग्रत हुई है, तथा जो संसार के नानाविध बाधा-विघ्न, घात-प्रतिघात और व्यर्थता के साथ युद्ध करते हुए अपने क्षुद्र शक्ति-सामथ्र्य द्वारा साफल्य-लाभ में अपने आपको निरुत्साह और असहाय महसूस करते हों, उन्हें श्रेय के पथ पर दृढ़ता से चरण संस्थापन पूर्वक आगे बढ़ने के लिये मार्गप्रदर्शन तथा प्रोत्साहन-प्रदान में ही इन प्रसंगों की सार्थकता है। नये साधक को प्रतिदिन के व्यावहारिक जीवन में जिन समस्त चित्तविक्षेपकारी छोटे बड़े अनेक संशयों और समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है उनकी सुसंग आलोचना और तद्विषयक व्यावहारिक समाधान भी इस पुस्तक का एक वैशिष्ट्य है; साथ ही इस उपदेशावली के आधार स्वरूप उच्च आध्यात्मिक सिद्धान्त भी इसमें प्रचुर परिमाण में मौजूद हैं।