यह ऐसे शंखों की ध्वनियाँ हैं , जो भीतर ही भीतर घुट कर रह गई हैं | इस तरह की घुटी हुई ध्वनियाँ , सधे हुए कानों तक ही पहुंच पाती हैं | इस तरह की हलचल का अर्थ है कि सहर (सुबह) , उफ़क (क्षितिज) पर खडी है |
एक नई सुबह की प्रतीक्षा में, प्रिय पाठकों की सेवा में प्रस्तुत एक , छोटा सा प्रयास |
इस पुस्तक की सम्पूर्ण कथा को अठारह अध्यायों में विभाजित किया गया है | एक-एक कहानी में अन्य कहानियां भी मिलेगी | ये कहानियां आपको कभी हंसाएंगी , कभी रुलायेगी कभी गंभीरता से कुछ सोचने पर मजबूर भी कर देंगी |
सभी पात्रों एवं स्थानों के नाम काल्पनिक हैं | फिर भी यदि कहीं किसी नाम अथवा स्थान में समानता मिल जाए तो इसे मात्र संयोग ही माना जाए |
इस पुस्तक में संकलित सभी कहानियां किसी न किसी प्रकार से एक दूसरे से जुडी हुई है | स्वतंत्र रूप से पढ़ी जाएँ तो भी अपने आप में पूर्ण हैं , जैसे कि हम हैं , किंतु सब मिल कर एक साथ में एक पूरा समाज , एक सम्पूर्ण कथा |
सुरेन्द्र 'सुकुमार'
मेरा परिचय मेरी रचनाएँ ही हैं |
सारी कलाओं और ज्ञान का केंद्र मनुष्य होने से , सब एक अदृश्य सूत्र में बंध जाते हैं | जैसे गणित , काव्य से बंधा है | ज्योमेट्री , आर्किटेक्चर से बंधी है और एक सृजनकर्ता अपने पाठकों से |
यह रचना , साधारण से शब्दों से बुना ऐसा तानाबाना है , जिसमें वे छोटे-छोटे पल साँस ले रहे हैं जो इंसान को खुद से , कुदरत से और परिवार से जोड़ रहे हैं , स्वाभाविक और बनावटीपन से दूर ......
60 के ऊपर हो गया हूँ | हमेशा दिल से काम लिया , दिमाग को कभी हावी नहीं होने दिया | इससे जिंदगी में कुछ ख़ुशी सहेज सका | ख़ुशी और गम का तो चोली-दामन का साथ रहता है , अतः उसका अलग से जिक्र क्या करना ? लेकिन , हर चीज का अंत आता है | मुझे ले जाने वाला वक़्त भी आएगा | वो जब भी आएगा , मैं उसे भी ख़ुशी से हंस कर गले लगा लूँगा |
पर , अभी कुछ समय शेष है | कुछ छोटे-छोटे पल हैं , जिन्हें सहेजना है , संवारना है | यादगार बनाना है |
‘तत्वम’ , ‘तुम तक’ , ‘ख़ुशी का मंत्र’ , ‘टेन ओन 10’ , 'ये तूने क्या किया' के बाद की रचना – “सब मर्द एक से नहीं होते” , आपके हाथों में है | आशा करता हूँ , प्रिय पाठकों के अमूल्य प्यार और बहुमूल्य समय को यह ‘कृति’ यथा संभव संतुलित कर पाए |
सु