हम फिदाए वतन पर, वतन भी हम पर फिदाए।
है किसी जालिम की जुर्रत, जो वतन हमसे छुड़ाए।
इसी को आधार मानकर मैंने वतन पर कुछ लिखने की कोशिश की है। तुकबन्दी के सहारे वही गज़ल, गीत बन गये। चूँकि गजल इश्क़ व हुस्न के बारे में लिखे बिना रंगत नहीं लाती। इसलिए मैंने भी कुछ इस पर कुछ लिखने की कोशिश की है। चूँकि गजल व नज़्म के लिय़े कोई नई बात नहीं है इसलिए भी कुछ इस पर रोशनी डालना लाजिमी था। और इस तरह कई प्रकार के फूलों से सजाकर एक नायाब गुलदस्ता बनाने की कोशिश की है।
उम्मीद है कि पाठक गण उर्दू व फारसी की विशेष जानकारी न होते हुए भी कुछ हिम्मत जुटाने की तारीफ ही करेंगे। खासकर उन माहिर गजलगो महानुभावों से गुजारिश है कि मेरा मनोबल बढ़ाने के लिय़े न चाहते हुए भी इस नाचीज को दुलार देंगे।
ज्यादा क्या कहूँ बस यह समझें कि लिखना थोड़ा, समझना बहुत।
- प्रेम नारायण तिवारी
जन्म : 04 अगस्त 1935
स्वर्गवास : 01 अक्टूबर 2021
माता : स्व.इन्द्राणी देवी
पिता : स्व. शिव नाथ तिवारी
पत्नी : स्व.कृष्णा देवी तिवारी
माता-पिता तुल्य :
स्व.रानी देवी व स्व. कल्लूराम तिवारी
संरक्षक :
स्व. शुद्धी देवी व प.पू.श्री शम्भू रतन त्रिवेदी
(बहन व बहनोई)
निवास :
ग्राम-पोस्ट- जामूँ, जनपद- कानपुर नगर
शिक्षा :
परास्नातक वाणिज्य व अर्थशास्त्र
जीवन यापन :
भारत में तब तृतीय स्थान प्राप्त जे.के. प्रतिष्ठान में सेवा-लिपिक से प्रबंधक तक।
रचना संग्रह :
‘प्रेम’ प्रसून
गुलदस्ता
शुभचिंतक :
परिजन, पुरजन एवं मित्रगण
सम्पर्क :
7071377107