अंग क्यों फड़कते हैं: Ang kyon fadaktey hain

· Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
4,5
420 mnenj
E-knjiga
72
Strani

O tej e-knjigi

अंग क्यों फड़कते हैं और क्या कहते हैं? - परमात्मा सभी स्थानों से बोल सकते हैं– पेड़ से, पत्थर से, जल एवं थल से, आकाश से, पशु-पक्षी से, नदी तथा पहाड़ से; जड़-चेतन इत्यादि किसी भी माध्यम से निर्देश दे सकते हैं। वे कर्तुं-अकर्तुं अन्यथा कर्तुं समर्थ हैं। सर्वत्र सार्वभौम उनकी छटा है। श्रवण-नयन-मन-गोचर समग्र सृष्टि उन्हीं का यन्त्र-तन्तु है। आर्त अनुरागी भक्तों के लिए जब वह नयनाभिराम प्रेरक बन जाते हैं, तब सब स्थानों से अपना कार्य सम्पादित करते हैं।

इस पुस्तक में मानव शरीर के विभिन्न हिस्सों में होने वाले स्पन्दनों का कारण और उसके संकेतों का विश्लेषण किया गया है जो कि साधना में काफी सहायक है। 

Ocene in mnenja

4,5
420 mnenj

O avtorju

यथार्थ गीता के प्रणेता

योगेश्वर सद्गुरु श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज।।

जीवन परिचय


स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्य की शोध में इतस्ततः विचरण करते तेईस वर्ष की आयु में नवम्बर 1955 ई. को परमहंस स्वामी श्री परमानन्दजी की शरण में आये। श्री परमानन्द जी का निवास चित्रकूट, अनुसूइया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) के घोर जंगल में रहा है, जो हिंसक जीव-वस्तुओं का निवास है। ऐसे निर्जन अरण्य में बिना किसी व्यवस्था के उनका निवास, घोषित करता है कि वे एक सिद्ध महापुरुष थे।

पूज्य परमहंस जी को आपके आगमन के संकेत वर्षों पूर्व ही मिलने लगे थे। जिस दिन आप आये परमहंस जी को ईश्वरीय निर्देश मिला, जिसे भक्तों से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बालक भवसरिता से पार जाने के लिए विकल है, आता ही होगा। आप पर दृष्टि पड़ते ही उन्होंने बताया कि वह बालक यही है। गुरू निर्देशन में चलते हुए, साधना के चरमोत्कर्ष पर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन कर, आप उसी परमात्म भाव को प्राप्त महापुरुष हैं।

आपकी शैक्षिक उपाधियाँ तो कोई भी नहीं, लेकिन सद्गुरु- कृपा से पूर्णता प्राप्त कर मानवमात्र के कल्याण में रत हैं... ‘सर्वभूतहितरतं।’ लेखन को आप साधन-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं किन्तु गीता भष्य ‘यथार्थ गीता’ के प्रणयन में ईश्वरीय निर्देशन ही निमित्त बना।

भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृत्तियाँ शान्त हो चुकी हैं, केवल छोटी-सी एक वृति शेष है, गीताज्ञान के आशय का यथावत् पुनप्रकाशन! पहले तो आपने इस वृत्ति को भजन से काटने का प्रयास किया किन्तु... भगवान के आदेशों का मूर्तरूप है- ‘यथार्थ गीता’।

यथार्थ गीता के रचना काल में भाष्य में जहां भी त्रुटि होती, भगवान उसे सुधार देते थे! पूज्यश्री की ‘स्वान्तः सुखाय’ यह कालजवी कृति सर्वान्तः सुखाय हो चली है। आर्यावर्त भारत ही नहीं विश्व के मानवमात्र के कल्याण में रत है, संलग्न है।

Ocenite to e-knjigo

Povejte nam svoje mnenje.

Informacije o branju

Pametni telefoni in tablični računalniki
Namestite aplikacijo Knjige Google Play za Android in iPad/iPhone. Samodejno se sinhronizira z računom in kjer koli omogoča branje s povezavo ali brez nje.
Prenosni in namizni računalniki
Poslušate lahko zvočne knjige, ki ste jih kupili v Googlu Play v brskalniku računalnika.
Bralniki e-knjig in druge naprave
Če želite brati v napravah, ki imajo zaslone z e-črnilom, kot so e-bralniki Kobo, morate prenesti datoteko in jo kopirati v napravo. Podrobna navodila za prenos datotek v podprte bralnike e-knjig najdete v centru za pomoč.