पुनर्जन्म - हृदय: Punarjanma - Hridaya

· Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
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पुनर्जन्म – बौद्धिक स्तर पर यह एक उलझा हुआ प्रश्न है। मनुष्य जन्मा, जीवन-यापन किया; शरीर छूटा, चला भी गया; कुछ समझ ही नहीं पाया कि पुनर्जन्म है या नहीं। किन्तु योगाभ्यास की एक निश्चित ऊँचाई से मनुष्य जब गुजरता है तो उसे स्पष्ट दिखाई देता है कि पुनर्जन्म है? मैं क्या था? आगे कहाँ जाना है?

हृदय – शरीर में हृदय कहाँ है जिसमें परमात्मा का निवास है? हृदय का परिचय तथा परमात्मा को जानने की सम्पूर्ण विधि पर प्रकाश डाला गया है। क्रमोन्नत तीन शरीर हैं– स्थूल, सूक्ष्म और कारण। क्रमश: कारण शरीर के अन्तिम स्तर पर साधन पहुँचता है, तहाँ ईश्वर का निवास है। यह पुस्तिका इन्हीं प्रश्नों का पूर्ण परिचय देती है। 

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Jakhar ravi
October 14, 2018
Isme stroy hai ki bahii dheki us kasaai ki ye betao kitne loog har rozz marte hai kya itno ki bahii phad sakte saaf jutt or bakvass logon ko pagal bena k desh ka naas kar diya in babaon or pando ne ..delhi k buradi mai kitne logon ko marne pe marboor kiya kuch nhai peta kisi ko kya ache karam hai kya bure karam koi n ni janta ..? kya bhagwan hai ya nhai kisi ne sidh nhai kiya ki bhagwan hai ya nhai
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KUNDAN KUMAR
July 29, 2019
log kahte hai bhagwan ke vazud ko kisi ne siddh nahi kiya. bhaiyon siddh to usko kiya jata hai jiske alawa bhi kuchh aur ho. aur vaise bhi siddh karne ke liye usko shabdo mein bandhana hoga, agar ye shabdo mein expressable hota to kya ise shree Krishna, Buddha, musa, isa, etc. mahatmaon ne ab tak siddh na kar diya hota. aur aapki laukik bhasha us parlaukik Brahma ko express karne ki aukat rakhata hai. 🙏🙏🙏
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Shubham Thakur
October 3, 2018
Adgadanand ji aapki sabhi books padhne me upyukth h and explain everything in details with proper proof ...
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About the author

यथार्थ गीता के प्रणेता

योगेश्वर सद्गुरु श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज।।

जीवन परिचय


स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्य की शोध में इतस्ततः विचरण करते तेईस वर्ष की आयु में नवम्बर 1955 ई. को परमहंस स्वामी श्री परमानन्दजी की शरण में आये। श्री परमानन्द जी का निवास चित्रकूट, अनुसूइया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) के घोर जंगल में रहा है, जो हिंसक जीव-वस्तुओं का निवास है। ऐसे निर्जन अरण्य में बिना किसी व्यवस्था के उनका निवास, घोषित करता है कि वे एक सिद्ध महापुरुष थे।

पूज्य परमहंस जी को आपके आगमन के संकेत वर्षों पूर्व ही मिलने लगे थे। जिस दिन आप आये परमहंस जी को ईश्वरीय निर्देश मिला, जिसे भक्तों से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बालक भवसरिता से पार जाने के लिए विकल है, आता ही होगा। आप पर दृष्टि पड़ते ही उन्होंने बताया कि वह बालक यही है। गुरू निर्देशन में चलते हुए, साधना के चरमोत्कर्ष पर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन कर, आप उसी परमात्म भाव को प्राप्त महापुरुष हैं।

आपकी शैक्षिक उपाधियाँ तो कोई भी नहीं, लेकिन सद्गुरु- कृपा से पूर्णता प्राप्त कर मानवमात्र के कल्याण में रत हैं... ‘सर्वभूतहितरतं।’ लेखन को आप साधन-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं किन्तु गीता भष्य ‘यथार्थ गीता’ के प्रणयन में ईश्वरीय निर्देशन ही निमित्त बना।

भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृत्तियाँ शान्त हो चुकी हैं, केवल छोटी-सी एक वृति शेष है, गीताज्ञान के आशय का यथावत् पुनप्रकाशन! पहले तो आपने इस वृत्ति को भजन से काटने का प्रयास किया किन्तु... भगवान के आदेशों का मूर्तरूप है- ‘यथार्थ गीता’। यथार्थ गीता के रचना काल में भाष्य में जहां भी त्रुटि होती, भगवान उसे सुधार देते थे! पूज्यश्री की ‘स्वान्तः सुखाय’ यह कालजवी कृति सर्वान्तः सुखाय हो चली है। आर्यावर्त भारत ही नहीं विश्व के मानवमात्र के कल्याण में रत है, संलग्न है।

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