गायत्री और यज्ञोपवीत (Hindi Self-help): Gayatri Aur Yagyopavit (Hindi Self-help)

·
· Bhartiya Sahitya Inc.
4,5
22 reseñas
eBook
38
Páginas
Apto

Información sobre este eBook

यज्ञोपवीत का उद्देश्य मानवीय जीवन में उस विवेक को जागृत करना होता है, जिससे वह अपने वर्तमान-भूत-भविष्य को सुखी और सम्पन्न बना सके। जो लोग अपना जीवन लहर में पड़े फूल-पत्तों की तरह अच्छी बुरी परिस्थितियों के साथ घसीटते रहते हैं वह कहीं भी हों, दुःखी ही रहते हैं; किन्तु हम जब प्रत्येक कार्य विचार और योजनाबद्ध तरीके से पूरा करते हैं तो भूलें कम होती हैं और हम अनेक संकटों से अनायास ही बच जाते हैं।

Valoraciones y reseñas

4,5
22 reseñas

Acerca del autor


पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य(20 सितम्बर 1911 - 02 जून 1990)

मूल नाम - श्रीराम शर्माजन्म - 20 सितम्बर 1911गाँव - आँवलखेड़ा, आगरा, उत्तर प्रदेश, भारतमृत्यु - 2 जून 1990 हरिद्वार, भारतअन्य नाम - श्रीराम मत्त, गुरुदेव, वेदमूर्ति, युग ॠषि, गुरुजी
भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की। उनने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।
परिचय
पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म आश्विन कृष्ण त्रयोदशी विक्रमी संवत् 1967 (20 सितम्बर 1911) को उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के आँवलखेड़ा ग्राम में (जो जलेसर मार्ग पर आगरा से पन्द्रह मील की दूरी पर स्थित है) हुआ था। उनका बाल्यकाल व कैशोर्य काल ग्रामीण परिसर में ही बीता। वे जन्मे तो थे एक जमींदार घराने में, जहाँ उनके पिता श्री पं.रूपकिशोर जी शर्मा आस-पास के, दूर-दराज के राजघरानों के राजपुरोहित, उद्भट विद्वान, भगवत् कथाकार थे, किन्तु उनका अंतःकरण मानव मात्र की पीड़ा से सतत् विचलित रहता था। साधना के प्रति उनका झुकाव बचपन में ही दिखाई देने लगा, जब वे अपने सहपाठियों को, छोटे बच्चों को अमराइयों में बिठाकर स्कूली शिक्षा के साथ-साथ सुसंस्कारिता अपनाने वाली आत्मविद्या का शिक्षण दिया करते थे। छटपटाहट के कारण हिमालय की ओर भाग निकलने व पकड़े जाने पर उनने संबंधियों को बताया कि हिमालय ही उनका घर है एवं वहीं वे जा रहे थे। किसे मालूम था कि हिमालय की ऋषि चेतनाओं का समुच्चय बनकर आयी यह सत्ता वस्तुतः अगले दिनों अपना घर वहीं बनाएगी। जाति-पाँति का कोई भेद नहीं। जातिगत मूढ़ता भरी मान्यता से ग्रसित तत्कालीन भारत के ग्रामीण परिसर में अछूत वृद्ध महिला की जिसे कुष्ठ रोग हो गया था, उसी के टोले में जाकर सेवा कर उनने घरवालों का विरोध तो मोल ले लिया पर अपना व्रत नहीं छोड़ा। उन्होने किशोरावस्था में ही समाज सुधार की रचनात्मक प्रवृत्तियाँ चलाना आरंभ कर दी थीं। औपचारिक शिक्षा स्वल्प ही पायी थी। किन्तु, उन्हें इसके बाद आवश्यकता भी नहीं थी क्योंकि, जो जन्मजात प्रतिभा सम्पन्न हो वह औपचारिक पाठ्यक्रम तक सीमित कैसे रह सकता है। हाट-बाजारों में जाकर स्वास्थ्य-शिक्षा प्रधान परिपत्र बाँटना, पशुधन को कैसे सुरक्षित रखें तथा स्वावलम्बी कैसे बनें, इसके छोटे-छोटे पैम्पलेट्स लिखने, हाथ की प्रेस से छपवाने के लिए उन्हें किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं थी। वे चाहते थे, जनमानस आत्मावलम्बी बने, राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान उसका जागे, इसलिए गाँव में जन्मे। इस लाल ने नारी शक्ति व बेरोजगार युवाओं के लिए गाँव में ही एक बुनताघर स्थापित किया व उसके द्वारा हाथ से कैसे कपड़ा बुना जाय, अपने पैरों पर कैसे खड़ा हुआ जाय-यह सिखाया।

Valorar este eBook

Danos tu opinión.

Información sobre cómo leer

Smartphones y tablets
Instala la aplicación Google Play Libros para Android y iPad/iPhone. Se sincroniza automáticamente con tu cuenta y te permite leer contenido online o sin conexión estés donde estés.
Ordenadores portátiles y de escritorio
Puedes usar el navegador web del ordenador para escuchar audiolibros que hayas comprado en Google Play.
eReaders y otros dispositivos
Para leer en dispositivos de tinta electrónica, como los lectores de libros electrónicos de Kobo, es necesario descargar un archivo y transferirlo al dispositivo. Sigue las instrucciones detalladas del Centro de Ayuda para transferir archivos a lectores de libros electrónicos compatibles.

Más de श्रीराम शर्मा आचार्य

eBooks similares