चन्द्रकान्ता सन्तति-6 (Hindi Novel): Chandrakanta Santati-6 (Hindi Novel)

5,0
6 recensións
Libro electrónico
315
Páxinas
Apto

Acerca deste libro electrónico

भूतनाथ अपना हाल कहते-कहते कुछ देर के लिए रुक गया और इसके बाद एक लम्बी साँस लेकर पुनः यों कहने लगा– ‘‘मैं अपने को कैदियों की तरह और सामने अपनी ही स्त्री को सरदारी के ढंग पर बैठे हुए देखकर, एक दफे घबड़ा गया और सोचने लगा कि क्या मामला है? मेरी स्त्री मुझे सामने ऐसी अवस्था में देखे और सिवाय मुस्कुराने के कुछ न बोले!! अगर वह चाहती तो मुझे अपने पास गद्दी पर बैठा लेती, क्योंकि इस कमरे में जितने दिखायी दे रहे हैं, उन सभों की वह सरदार मालूम पड़ती है, इत्यादि बातों को सोचते-सोचते मुझे क्रोध चढ़ आया और मैंने लाल आँखों से उसकी तरफ देखकर कहा, ‘‘क्या तू मेरी स्त्री वही रामदेई है, जिसके लिए मैंने तरह-तरह के कष्ट उठाये और जो इस समय मुझे कैदियों की अवस्था में अपने सामने देख रही है?’’

Valoracións e recensións

5,0
6 recensións

Acerca do autor


देवकी नन्दन खत्री

जन्म : १८ जून १८६१ (आषाढ़ कृष्ण ७ संवत् १९१८)। जन्मस्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)।

बाबू देवकीनन्दन खत्री के पिता लाला ईश्वरदास के पुरखे मुल्तान और लाहौर में बसते-उजड़ते हुए काशी आकर बस गए थे। इनकी माता मुजफ्फरपुर के रईस बाबू जीवनलाल महता की बेटी थीं। पिता अधिकतर ससुराल में ही रहते थे। इसी से इनके बाल्यकाल और किशोरावस्था के अधिसंख्य दिन मुजफ्फरपुर में ही बीते।

हिन्दी और संस्कृत में प्रारम्भिक शिक्षा भी ननिहाल में हुई। फारसी से स्वाभाविक लगाव था, पर पिता की अनिच्छावश शुरू में उसे नहीं पढ़ सके। इसके बाद अठारह वर्ष की अवस्था में, जब गया स्थित टिकारी राज्य से सम्बद्ध अपने पिता के व्यवसाय में स्वतंत्र रूप से हाथ बँटाने लगे तो फारसी और अंग्रेजी का भी अध्ययन किया। २४ वर्ष की आयु में व्यवसाय सम्बन्धी उलट-फेर के कारण वापस काशी आ गए और काशी नरेश के कृपापात्र हुए। परिणामतः मुसाहिब बनना तो स्वीकार न किया, लेकिन राजा साहब की बदौलत चकिया और नौगढ़ के जंगलो का ठेका पा गए। इससे उन्हें आर्थिक लाभ भी हुआ और वे अनुभव भी मिले जो उनके लेखकीय जीवन में काम आए। वस्तुतः इसी काम ने उनके जीवन की दिशा बदली।

स्वभाव से मस्तमौला, यारबाश किस्म के आदमी और शक्ति के उपासक। सैर-सपाटे, पतंगबाजी और शतरंज के बेहद शौकीन। बीहड़ जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन खँडहरों से गहरा, आत्मीय लगाव रखनेवाले। विचित्रता और रोमांचप्रेमी। अद्भुत स्मरण-शक्ति और उर्वर, कल्पनाशील मस्तिष्क के धनी।

चन्द्रकान्ता पहला ही उपन्यास, जो सन् १८८८ में प्रकाशित हुआ। सितम्बर १८९८ में लहरी प्रेस की स्थापना की। ‘सुदर्शन’ नामक मासिक पत्र भी निकाला। चन्द्रकान्ता और चन्द्रकान्ता सन्तति (छः भाग) के अतिरिक्त देवकीनन्दन खत्री की अन्य रचनाएँ हैं : नरेन्द्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेन्द्र वीर या कटोरा-भर खून, काजल की कोठरी, गुप्त गोदना तथा भूतनाथ (प्रथम छः भाग)।

निधन : १ अगस्त, सन १९३१।

Valora este libro electrónico

Dános a túa opinión.

Información de lectura

Smartphones e tabletas
Instala a aplicación Google Play Libros para Android e iPad/iPhone. Sincronízase automaticamente coa túa conta e permíteche ler contido en liña ou sen conexión desde calquera lugar.
Portátiles e ordenadores de escritorio
Podes escoitar os audiolibros comprados en Google Play a través do navegador web do ordenador.
Lectores de libros electrónicos e outros dispositivos
Para ler contido en dispositivos de tinta electrónica, como os lectores de libros electrónicos Kobo, é necesario descargar un ficheiro e transferilo ao dispositivo. Sigue as instrucións detalladas do Centro de Axuda para transferir ficheiros a lectores electrónicos admitidos.

Máis de देवकी नन्दन खत्री

Libros electrónicos similares