निर्मला (Hindi Sahitya): Nirmala (Hindi Novel)

· Bhartiya Sahitya Inc.
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प्रेमचन्द का यह उपन्यास ‘‘निर्मला’’ छोटा होते हुए भी उनके प्रमुख उपन्यासों में गिना जाता है। इसका प्रकाशन आज से लगभग ६५ साल पहले १९२५ में हुआ था। इस उपन्यास में उन्होंने दहेज प्रथा तथा बेमेल विवाह की समस्या उठाई है और बहुसंख्यक मध्यमवर्गीय हिन्दू समाज के जीवन का बड़ा यथार्थवादी मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है। उनके अन्य उपन्यास निम्नवर्गीय तथा ग्रामीण कृषक जीवन का चित्रण करते हैं तथा राष्ट्रीय स्वाधीनता तथा समानता का पक्ष प्रबलता से प्रस्तुत करते हैं। इस श्रेणी में ‘‘गोदान’’, ‘‘रंगभूमि’’, ‘‘कर्मभूमि’’, ‘‘सेवासदन’’, ‘‘प्रेमाश्रम’’ आदि उपन्यास आते हैं जो सब गांधी विचारधारा से प्रभावित आदर्शवादी तथा आम जनता के जीवन से संबंधित है। ‘‘गबन’’ भी ‘‘निर्मला’’ की ही भाँति स्त्रियों की समस्या पर है परन्तु यह एक अन्य समस्या-स्त्रियों के आभूषण प्रेम की समस्या प्रस्तुत करता है

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प्रेमचंद

(31 जुलाई, 1880 - 8 अक्टूबर 1936)

हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव वाले प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में की तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं।

 

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