सेवासदन (Hindi Sahitya): Sewasadan (Hindi Novel)

· Bhartiya Sahitya Inc.
4.6
10 جائزے
ای بک
353
صفحات
اہل ہے

اس ای بک کے بارے میں

नारी जाति की परवशता, निस्सहाय अवस्था, आर्थिक एवं शैक्षिक परतंत्रता, अर्थात् नारी दुर्दशा पर आज के हिन्दी साहित्य में जितनी मुखर चर्चा हो रही है; बीसवीं सदी के प्रारंभिक चरण में, गहरी जीवन दृष्टि और संवेदनशील सामाजिक सरोकार के रचनाकार, कथासम्राट प्रेमचंद (१८८०-१९३६) के यहाँ कहीं इससे ज्यादा मुखर थी। नारी जीवन की समस्याओं के साथ समाज के धर्माचार्यों, मठाधीशों, धनपतियों, सुधारकों के आडंबर, दंभ, ढोंग, पाखंड, चरित्रहीनता, दहेज-प्रथा, बेमेल विवाह, पुलिस की घूसखोरी, वेश्यागमन, मनुष्य के दोहरे चरित्र, सांप्रदायिक द्वेष आदि आदि सामाजिक विकृतियों के घृणित विवरणों से भरा उपन्यास सेवासदन (१९१६) आज भी समकालीन और प्रासंगिक बना हुआ है। इन तमाम विकृतियों के साथ-साथ यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है। अतिरिक्त सुखभोग की अपेक्षा में अपना सर्वस्व गंवा लेने के बाद जब कथानायिका को सामाजिक गुणसूत्रों की समझ हो जाती है, तब वह किसी तरह दुनिया के प्रति उदार हो जाती है और उसका पति साधु बनकर अपने व्यतीत दुष्कर्मों का प्रायश्चित करने लगता है, जमींदारी अहंकार में डूबे दंपति अपनी तीसरी पीढ़ी की संतान के जन्म से प्रसन्न होते हैं, और अपनी सारी कटुताओं को भूल जाते हैं–ये सारी स्थितियां उपन्यास की कथाभूमि में इस तरह पिरोई हुई हैं कि तत्कालीन समाज की सभी अच्छाइयों बुराइयों का जीवंत चित्र सामने आ जाता है। हर दृष्टि से यह उपन्यास एक धरोहर है।

درجہ بندی اور جائزے

4.6
10 جائزے

مصنف کے بارے میں

प्रेमचन्द

जन्म :- 31 जुलाई, 1880।

जन्म-स्थान :- बनारस शहर से करीब चार मील दूर लमही नामक गाँव में।

वास्तविक नाम :- धनपतराय श्रीवास्तव।

शिक्षा :- मैट्रिक (द्वितीय श्रेणी में), बी.ए.।

निधन :- 8 अक्टूबर 1936।

मुंशी प्रेमचन्द का जन्म लमही नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल श्रीवास्तव था। पाँच-छः वर्ष की उम्र में प्रेमचन्द को लमही गाँव के करीब लालगंज नामक गाँव में एक मोलवी साहब के पास फारसी और उर्दू पढ़ने के लिए भेजा गया।

माँ के निधन के बाद, माँ जैसा कुछ-कुछ प्यार धनपत को अपनी बड़ी बहन से मिला। पर कुछ ही समय के पश्चात् शादी होने पर वह भी अपने घर चली गई। और अक्सर उसके पिता ढेर सारे काम के बोझ के कारण दबे रहते थे। अब धनपत की दुनिया एक प्रकार से सूनी हो गई। उनके लिए यह कमी इतनी गहरी और इतनी तड़पने वाली थी कि उन्होंने अपने उपन्यास और कहानियों के बार-बार ऐसे पात्रों की रचना की-जिनकी माँ बचपन में ही मर गई।

मातृत्व स्नेह से वंचित हो चुके, और पिता के देख-रेख से दूर रहने वाले बालक धनपत ने अपने लिए कुछ ऐसा रास्ता चुना जिस पर आगे चलकर वे ‘उपन्यास सम्राट’, ‘महान् कथाकार’, ‘कलम का सिपाही’, जैसी उपाधियों से विभूषित हुए।

चौदह वर्ष की उम्र में पिता के देहान्त के बाद उन पर रोजी-रोटी कमाने की चिन्ता सिर पर सवार हो गई। ट्यूशन कर-करके उन्होंने किसी प्रकार मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की।

विवाह होने के बाद संयोग से उन्हें स्कूल की मास्टरी मिल गई। सन् 1899 से सन् 1921 तक वे मास्टरी के पद पर रहे और नौकरी करते हुए ही उन्होंने इण्टर और फिर बी.ए. पास किया।

प्रेमचन्द को उर्दू और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में आधुनिक कहानी का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने लगभग तीन सौ कहानियाँ तथा चौदह सर्वश्रेष्ठ छोटे-बड़े उपन्यास लिखे।

गाँधी जी के आह्वान पर सरकारी नौकरी छोड़ने के कुछ महीनों पश्चात् उन्होंने मारवाड़ी स्कूल में काम किया, लेकिन वहाँ से इस्तीफा देकर वे ‘मर्यादा’ समाचार-पत्र’ में सम्पादन किया। कुछ समय के लिए काशी विद्यापीठ में पढ़ाया और ‘माधुरी’ के सम्पादन के लिए लखनऊ गये। छः-सात साल बाद मासिक पत्र ‘हंस’ के सम्पादन के लिए वापस बनारस आ गये। उन्होंने ‘जागरण’ भी निकाला। दोनों ही पत्रों में घाटा होने के कारण उनके ऊपर कर्ज़ का बोझ बढ़ गया। जिसको उतारने के लिए वे बम्बई भी गये। लेकिन साल-भर बाद वे वापस आ गये।

8 अक्तूबर, सन् 1936 को 56 वर्ष की आयु में जलोदर (ड्रॉप्सी) रोग से पीड़ित यह महान लेखक दुनिया से विदा हो गया, लेकिन अपनी अमूल्य कृतियों और रचनाओं की धरोहर छोड़कर वह हमेशा के लिए अमर हो गया।

اس ای بک کی درجہ بندی کریں

ہمیں اپنی رائے سے نوازیں۔

پڑھنے کی معلومات

اسمارٹ فونز اور ٹیب لیٹس
Android اور iPad/iPhone.کیلئے Google Play کتابیں ایپ انسٹال کریں۔ یہ خودکار طور پر آپ کے اکاؤنٹ سے سینک ہو جاتی ہے اور آپ جہاں کہیں بھی ہوں آپ کو آن لائن یا آف لائن پڑھنے دیتی ہے۔
لیپ ٹاپس اور کمپیوٹرز
آپ اپنے کمپیوٹر کے ویب براؤزر کا استعمال کر کے Google Play پر خریدی گئی آڈیو بکس سن سکتے ہیں۔
ای ریڈرز اور دیگر آلات
Kobo ای ریڈرز جیسے ای-انک آلات پر پڑھنے کے لیے، آپ کو ایک فائل ڈاؤن لوڈ کرنے اور اسے اپنے آلے پر منتقل کرنے کی ضرورت ہوگی۔ فائلز تعاون یافتہ ای ریڈرز کو منتقل کرنے کے لیے تفصیلی ہیلپ سینٹر کی ہدایات کی پیروی کریں۔