1.25 billion corruption सवा अरब भ्रष्टाचार: New Satires-1/नये व्यंग्य-1

· New Satires नये व्यंग्य Cartea 1 · Sanjay Grover
4,5
6 recenzii
Carte electronică
61
Pagini

Despre această carte electronică

*न तो क़िताब मूर्ति है न लेखक भगवान*

बचपन से लेकर काफ़ी बाद तक कितने ही पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा कि हमारा समाज बहुत भावुक है और पश्चिम बहुत भौतिकतावादी है। मगर व्यवहार में देखा कि हमारे यहां नये, पवित्र कहे जानेवाले, और जनम-जनम के कहे जानेवाले रिश्तों की नींव भी पैसे के आधार पर रखी जाती है, बाक़ी कोई भी रीति-रिवाज-त्यौहार लिफ़ाफ़ो के लेन-देन के बिना ज़रा-सा भी आगे नहीं सरकता।

और आगे चलकर जैसे-जैसे अपना सोचने, ख़ुदको ही डरानेवाले ख़्यालों पर ख़ुलकर विश्लेषण करने का होश और हिम्मत आते गए तो लगने लगा कि हमारी क़िताबों में लोगों ने अपनी आज़माई बातों के साथ सुनी-सुनाई और पढ़ी-पढ़ाई बातें भी अच्छी-ख़ासी मात्रा में लिख रखीं हैं। ऐसे और भी कुछ कारण रहे कि क़िताबों में पहले जैसी रुचि नहीं रह गई।

क़िताबों के प्रति भगवान-भक्त जैसी आस्था और श्रद्धा पैदा करने की कोशिशें अब ज़रा नहीं सुहातीं। क़िताब को लगभग मूर्ति, लेखक को लगभग भगवान बनाने और बिक्री को चढ़ौती की तरह हासिल करने की मानसिकता अजीब लगती है। क़िताबें ज़रुरी हैं, उपयोगी हैं, मगर लेखक कोई पवित्रता (?) की लाँड्री में से निकला मसीहा नहीं है कि उसके लिखे को पढ़ने के बजाय चरनामृत की तरह खोपड़े पर उड़ेलकर यह सोचा जाए कि इसमें से जो निकलेगा सब अंदर घुसकर अपने-आप कोई रास्ता बनाएगा और हमारे दिल-दिमाग़ को सिर्फ़ सच्चाई की ओर ही ले जाएगा। जैसा मैंने समाज को देखा है, मुझे तो बिलकुल भी नहीं लगता कि लेखक सिर्फ़ सच ही लिखता है। लेकिन हम अगर हिंदू-मुस्लिम या वाम-दक्षिण जैसे खानों में बंटे हो तो हमारे झूठ और सच को समझने के पैमाने पूर्वाग्रही हो ही जाते हैं।

अगर समाज की जड़ों तक पाखंड पसरा हो तो पाठक भी झूठ को सच की तरह ही पढ़ता है। जो लेखक शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाई जानेवाली क़िताबों में शामिल होने के लिए सर के बल हो जाते हैं उनके द्वारा लिखे गए स्वाभिमान के निबंध में कितना दम और कितनी सच्चाई हो सकती है !?

तुलसीदास और मनुमहाराज के महाग्रंथ किसीके लिए छाती से लगाए रखने के क़ाबिल हैं तो दूसरे कई लोगों के लिए क़ाबिले-बर्दाश्त भी नहीं हैं।

क़िताबों के प्रति जागरुकता पैदा करनी चाहिए, श्रद्धा, आस्था और अंधभक्ति नहीं।

-संजय ग्रोवर

03-09-2014

on FaceBook

Evaluări și recenzii

4,5
6 recenzii

Despre autor

ʘ SANJAY GROVER संजय ग्रोवर :

ʘ सक्रिय ब्लॉगर व स्वतंत्र लेखक.

ʘ Active Blogger and Freelance Writer.

ʘ मौलिक और तार्किक चिंतन में रुचि.

ʘ Inclined toward original and logical thinking.

ʘ नये विषयों, नये विचारों और नये तर्कों के साथ लेखन.

ʘ loves writing on new subjects with new ideas and new arguments.

ʘ फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी सक्रिय.

ʘ Also active on Facebook and Twitter.

ʘ पत्र-पत्रिकाओं में कई व्यंग्य, कविताएं, ग़ज़लें, नारीमुक्ति पर लेख आदि प्रकाशित.

ʘ Several satires, poems, ghazals and articles on women's lib published in various journals.

ʘ बाक़ी इन लेखों/व्यंग्यों/ग़जलों/कविताओं/कृतियों के ज़रिए जानें :-)

ʘ Rest.. learn by these articles/satires/ghazals/poems/creations/designs :-)

Evaluează cartea electronică

Spune-ne ce crezi.

Informații despre lectură

Smartphone-uri și tablete
Instalează aplicația Cărți Google Play pentru Android și iPad/iPhone. Se sincronizează automat cu contul tău și poți să citești online sau offline de oriunde te afli.
Laptopuri și computere
Poți să asculți cărțile audio achiziționate pe Google Play folosind browserul web al computerului.
Dispozitive eReader și alte dispozitive
Ca să citești pe dispozitive pentru citit cărți electronice, cum ar fi eReaderul Kobo, trebuie să descarci un fișier și să îl transferi pe dispozitiv. Urmează instrucțiunile detaliate din Centrul de ajutor pentru a transfera fișiere pe dispozitivele eReader compatibile.