KhudaaoN Ke Shahar Me Aadmi/ख़ुदाओं के शहर में आदमी

· Sanjay Grover
5,0
4 ulasan
eBook
95
Halaman

Tentang eBook ini

लीक से लड़ते गजलकार हैं संजय ग्रोवर

----------------------------------------------- 

 

संजय ग्रोवर लीक से लड़ते गजलकार हैं। इनकी गजलें अल्फ़ाज और अंदाज की कसीदाकारी में न फंसकर जिंदगी की सच्चाइयों को बाहर निकालने के लिए जद्दोजहद करती दिखाई देती हैं। ये सच को झूठ से, असली को नकली से, भलमनषी को कपट से आगाह करती हैं, तो कई बार एकाकी अंतर्मन को खंगालती, धोती, सुखाती नजर आती हैं। सांप्रदायिक विभेद, जातिगत दंभ और कूरीतियों के विरुद्ध तो ये अत्यंत मारक और पैनी धार आख्तियार कर लेती हैं।

 

संजय की रचनाओं को ब्लॉग और अन्य सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर पढ़ने वाली पीढ़ी में बहुत कम लोग जानते होंगे कि दो-ढाई दशक पहले इनकी गजलों ने देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में अच्छी पैठ बना रखी थी और ये हिंदी गजल के सुपरिचित नामों में शुमार रहे हैं। हालांकि लेखन को पेशेवर मायनों में वह अनवरत या झटपटवादी परिपाटी से नहीं जोड़ पाए और बीच के कई वर्षों में बहुत कम लिखा या गायब से रहे। छपने-छपाने की होड़ में पड़ना इनकी फितरत नहीं है, शायद इसीलिए हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में सुपरिचित गजलकार के रूप में जगह बनाने के करीब एक दशक बाद वर्ष 2003 में इनका पहला गजल संग्रह ‘खुदाओं’ के शहर में आदमी प्रकाशित हुआ। इसकी दर्जनों गजलें सामाजिक कसौटी पर समय की सीमा को पार कर आज भी प्रासंगिक बनी हुई हैं, जिन्हें हाल ही में संजय ने कुछ नई गजलों के साथ ई-बुक का रूप दिया है और वे ऑनलाइन उपलब्ध हैं। उसके बाद के संग्रह उन्होंने डिजिटल रूप में ही प्रकाशित किया है। ट्वीटर और फेसबुक पर वनलाइनर पोस्ट के जमाने में संजय ने भी सोशल मीडिया पर दस्तक दी है और कई बार एकाध शेर के जरिए भी अपने दिल की बात रख देते हैं।

 

एक गजल में वह कहते हैं ‘ या तो मैं सच कहता हूं या फिर चुप ही रहता हूं ’ और सही मायनों में यही उनका रचनात्मक व्यक्तित्व है। उन्होंने सामाजिक मिथकों, पाखंड और दिखावटी जीवन मूल्यों पर करारी चोट की है। वह झूठ को उसकी आखिरी परत तक छीलते नजर आते हैं।

मसलन, 

‘सच के बारे में झूठ क्या बोलूं, 

सच भी झूठों के काम आना है’

या फिर

‘सच जब आपने आप से बातें करता है

झूठा जहां कहीं भी हो वह डरता है’

 

‘मोहरा, अफवाहें फैलाकर,

बात करे क्या आंख मिलाकर

औरत को मां बहिन कहेगा,

लेकिन थोड़ा आंख दबाकर ’

 

उन्होंने अपनी गजलों में वैचारिक और चारित्रिक दोहरेपन की भी खूब खबर ली है। जहां कहीं विरोधाभास मिला उसे शेर का जरिया बना डाला। इसकी बानकी के तौर पर कुछ गजलों का एक-एक मतला हाजिर है-

‘पद सुरक्षा धन प्रतिष्ठा हर तरह गढ़ते रहे

और फिर बोले कि हम तो उम्र भर लड़ते रहे’

----

‘अपनी तरह का जब भी उनको माफिया मिला

बोले उछलकर देखो कैसा काफ़िया मिला’

----

‘दिखाने को उठना अकेले में गिरना

इसी को बताया है पाने की दुनिया’

----

‘बिल्कुल ही एक जैसी बातें बोल रहे थे

वे रोज एक दूसरे को खोल रहे थे’

 

 

संजय ने सामाजिक रूढ़ियों, स्वार्थपरक रिस्मो-रिवाज और बनावटी मर्यादा के जाल में कसमसाते जीवन का बड़ी संजीदगी से चित्रण किया है।

 

‘ लड़के वाले नाच रहे थे, लड़की वाले गुमसुम थे

याद करो उस वारदात में अक्सर शामिल हम तुम थे’

----

 ‘ नम्र लहज़ों के लिफ़ाफ़ों में जदीदे-मुल पकड़े जाते हैं हमेशा कन्यादानों ---

‘आन को ईमान पे तरजीह वाह रे वाह

वहशी को इंसान पे दरजीह वाह रे वाह’

----

नाक पकड़कर घूम रहे थे सदियों से

अंदर से जो खुद पाख़ाने निकले हैं

 

 

सांप्रदायिकता, जातिवाद और इनके राजनीतिकरण को लेकर संजय बेहद सचेत और सक्रिय नजर आते हैं। वह शेर दर शेर इनकी जहरीली प्रवृत्तियों को उजागर करते रहे हैं। यह उनके लेखन और कृतित्व के केंद्रीय विषयों में रहा है।

 

‘हिंदू कि मुसलमां, मुझे कुछ याद नहीं है

है शुक्र कि मेरा कोई उस्ताद नहीं है’

----

‘छोटे बच्चों को सरेआम डराया तुमने

ऐसे हिंदू औ’मुसलमान बनाया तुमने ‘

----

‘काटने की, बांटने की बात छोड़ेंगे नहीं

आदमियत छोड़ देंगे जात छोड़ेंगे नहीं’

----

न मद्रासी में रहता हूं न न पंजाबी में रहता हूं

यूं ताले तो बहुत हैं मैं मगर चाबी में रहता हूं

----

तो क्या संजय ग्रोवर चरम यथार्थ, आक्रोश, निराशा, बेचैनी और वैचारिक अवसाद की गजलगोई करते हैं? ऐसा नहीं लगता। उनके कई शेर अंधेरे में दिए जलाते, उम्मीदों को जगाते और संघर्ष का हौसला बढ़ाते नजर आते हैं। वह कहते हैं-

‘अपनी आग बचाए रखना,

सही वक्त जब आए, रखना

खिसक रही हों जब बुनियादें,

सच्चाई के पाए रखना’

----

‘र्दद को इतना जिया कि दर्द मुझसे डर गया

और फिर हंसकर के बोला यार मैं तो मर गया’ 

----

ऐसा नहीं कि भीड़ में शामिल नहीं हूं मैं

लेकिन धड़कना छोड़ दूं वो दिल नहीं हूं मैं

---- 

‘मौत से पहले मौत क्यों आए

अपनी मर्जी का कुछ किया जाए’।

----

संजय ने उस दौर में गजलगोई शुरू की थी, जब दुष्यंत कुमार की नींव पर हिंदी गजलकारों की नई पीढ़ियां अपनी ईंटें जमातीं आ रही थीं। उर्दू काव्‍यभाषा के संस्‍कार को हिन्‍दी में लेकर चलने का जोखिम यह भी है कि आपको टुटपूंजिया कवि के रूप में नजरंदाज कर दिया जाए। लेकिन संजय ने अपने संकोची स्वभाव, अनौपचारिक लेखन प्रवृत्तियों और अनियमित रचनाकर्म के बावजूद हिंदी गजल में न सिर्फ अपना स्पेस हासिल किया, बल्कि पहचान भी बनाई है। वैसे तो वह गजल में भाषिक-विधान और संरचना को लेकर काफी सतर्क दिखते हैं, लेकिन विचारों के आगे वह शिल्प को तरजीह नहीं देते। कई शेर में छंद और लयबद्दता को दरकिनार करते और सीधे अपनी बात कहते नजर आते हैं।

 

प्रमोद राय


Rating dan ulasan

5,0
4 ulasan

Tentang pengarang

 ʘ SANJAY GROVER संजय ग्रोवर :

ʘ सक्रिय ब्लॉगर व स्वतंत्र लेखक.
ʘ Active Blogger and Freelance Writer.
ʘ मौलिक और तार्किक चिंतन में रुचि.
ʘ Inclined toward original and logical thinking.
ʘ नये विषयों, नये विचारों और नये तर्कों के साथ लेखन.
ʘ loves writing on new subjects with new ideas and new arguments.
ʘ फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी सक्रिय.
ʘ Also active on Facebook and Twitter.
ʘ पत्र-पत्रिकाओं में कई व्यंग्य, कविताएं, ग़ज़लें, नारीमुक्ति पर लेख आदि प्रकाशित.
ʘ Several satires, poems, ghazals and articles on women's lib published in various journals.
ʘ बाक़ी इन लेखों/व्यंग्यों/ग़जलों/कविताओं/कृतियों के ज़रिए जानें :-)
ʘ Rest learn by these articles/satires/ghazals/poems/creations/designs :-)
ʘ mob : 91-8585913486
ʘ blogs : www.samwaadghar.blogspot.com
ʘ email : samvadoffbeat@hotmail.com
ʘ home : 147-A, Pocket-A, Dilshad Garden, Delhi-110095 (INDIA)

------------------------------------------------------------------------------------------------------------

BOOKS AVAILABLE ON THIS PLATFORM : क़िताबें जो  यहां उपलब्ध हैं- 

1.      सरल की डायरी Saral Ki Diary  

            https://play.google.com/store/books/details?id=02J-DwAAQBAJ

2.      EK THAA ISHWAR एक था ईश्वर: New Satires-2/ नये व्यंग्य-

            https://play.google.com/store/books/details?id=mgEmCgAAQBAJ

3.      Fashion OffBeat: 20 Designs for Shirts & Jackets

https://play.google.com/store/books/details?id=AVAnDwAAQBAJ

4.      Nirmaan-4/निर्माण-4: Children's Magazine/बच्चों की पत्रिका

https://play.google.com/store/books/details?id=_u8kDwAAQBAJ 

5.      20 OF-BEAT IDEAS Of BOOK-COVER-DESIGNS: क़िताब-कवर के 20 ऑफ़-बीट, यूनिक़ डिज़ाइन

https://play.google.com/store/books/details?id=SKF8DwAAQBAJ

6.      Pictures of my Ghazals: ग़ज़लों की तस्वीरें

https://play.google.com/store/books/details?id=JMx8DwAAQBAJ 

7.      Nirmaan-5/निर्माण-5: Children's Magazine/बच्चों की पत्रिका

https://play.google.com/store/books/details?id=i3BhDwAAQBAJ 

8.      E Book Ke Faayde ईबुक के फ़ायदे

https://play.google.com/store/books/details?id=2VlQDwAAQBAJ 

9.      Nirmaan-6/निर्माण-6: Children's Magazine/बच्चों की पत्रिका

https://play.google.com/store/books/details?id=OoZfDwAAQBAJ

10.  पागलखाना, पज़लें और पैरोडियां

https://play.google.com/store/books/details?id=zup_DwAAQBAJ

11.  पागलखाने का/के स्टेटस: Paagal-khaane Ka/Ke Status

https://play.google.com/store/books/details?id=eet_DwAAQBAJ

12.  मरा हुआ लेखक सवा लाख का

https://play.google.com/store/books/details?id=TlKFDwAAQBAJ

13.  ख़ुदाओं के शहर में आदमी

https://play.google.com/store/books/details?id=_lGFDwAAQBAJ

14.  चालू वर्सेज़ निराकार

https://play.google.com/store/books/details?id=0iaGDwAAQBAJ

15.  सवा अरब भ्रष्टाचार

https://play.google.com/store/books/details?id=IkOHDwAAQBAJ

16.  ये कोई बात हुई

https://play.google.com/store/books/details?id=9kSHDwAAQBAJ

17.  Nirmaan-5/निर्माण-5

https://play.google.com/store/books/details?id=i3BhDwAAQBAJ

18.  Nirmaan-6/निर्माण-6

https://play.google.com/store/books/details?id=OoZfDwAAQBAJ

Beri rating eBook ini

Sampaikan pendapat Anda.

Informasi bacaan

Smartphone dan tablet
Instal aplikasi Google Play Buku untuk Android dan iPad/iPhone. Aplikasi akan disinkronkan secara otomatis dengan akun Anda dan dapat diakses secara online maupun offline di mana saja.
Laptop dan komputer
Anda dapat mendengarkan buku audio yang dibeli di Google Play menggunakan browser web komputer.
eReader dan perangkat lainnya
Untuk membaca di perangkat e-ink seperti Kobo eReaders, Anda perlu mendownload file dan mentransfernya ke perangkat Anda. Ikuti petunjuk Pusat bantuan yang mendetail untuk mentransfer file ke eReaders yang didukung.