"खूब लड़ी मरदानी वो तो झाँसीवाली रानी थी...’ इन पंक्तियों का उद्घोष होते ही इनकी लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम मन में कौंध जाता है। वीररस से ओत-प्रोत कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त; 1904 को इलाहाबाद के निहालपुर गाँव में हुआ। वे बचपन से कविता लिखने लगी थीं। उनकी कविताओं ने उन्हें पूरे स्कूल में लोकप्रिय बना दिया था।
महादेवी वर्मा उनकी बचपन की सहेली थीं। दोनों का साथ लंबे समय तक बना रहा। सुभद्रा की पढ़ाई हालाँकि नौवीं कक्षा के बाद ही छूट गई; लेकिन उनके साहित्य की गहराई से यह अभाव जरा भी नहीं खटकता। वे कांग्रेस की कार्यकर्ता रहीं और बापू की लाडली रहीं। जबलपुर में वर्ष 1922 का ‘झंडा सत्याग्रह’ देश का ऐसा पहला सत्याग्रह था; जिसमें सुभद्रा पहली महिला सत्याग्रही थीं।
सुभद्रा बचपन से दबंग; विद्रोही और वीरांगना थीं। उनकी रचनाओं में उनकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति देखी जा सकती है। उन्होंने लगभग 88 कविताओं और 46 कहानियों की रचना की; जिसमें अशिक्षा; अंधविश्वास; जातिप्रथा आदि रूढि़यों पर प्रहार किया गया है। ‘झाँसी की रानी’ उनकी सदाबहार रचना है; जो आज भी स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल है और जल्दी ही बच्चे उससे स्वयं को जोड़ लेते हैं। ‘बिखरे मोती’; ‘उन्मादिनी’ और ‘सीधे-सादे चित्र’ उनके तीन लोकप्रिय कहानी-संग्रह हैं।
44 वर्ष की अल्पायु में 15 फरवरी; 1948 को कार द्वारा नागपुर से जबलपुर लौटते समय एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया।RASHTRABHAKT KAVYITRI SUBHADRA KUMARI CHAUHAN by Mi Rajasvi: "RASHTRABHAKT KAVYITRI SUBHADRA KUMARI CHAUHAN" appears to be a book celebrating the life and contributions of Subhadra Kumari Chauhan, a renowned Indian poetess known for her patriotic poetry.
Key Aspects of the Book "RASHTRABHAKT KAVYITRI SUBHADRA KUMARI CHAUHAN":
Biographical Account: The book may provide insights into the life and times of Subhadra Kumari Chauhan, including her early life, literary journey, and patriotic fervor.
Patriotic Poetry: It might showcase Chauhan's notable works of patriotic poetry, emphasizing her role in inspiring freedom fighters through her verses.
Cultural Legacy: "RASHTRABHAKT KAVYITRI SUBHADRA KUMARI CHAUHAN" could discuss Chauhan's enduring cultural impact and her influence on Hindi literature.
The author, Mi Rajasvi, likely appreciates the literary and patriotic contributions of Subhadra Kumari Chauhan and seeks to highlight her significance in Indian literature and history.