Mogli Ke Karname: Mogli Ke Karname: Adventures of Mogli

· Prabhat Prakashan
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गरमी का मौसम था। सिवनी की पहाड़ियों में बापू भेड़िया अपनी गुफा के अंदर शाम तक सोता रहा। जैसे ही उसे शाम के सात बजने का अहसास हुआ; तो उसने नींद भगाने के लिए एक लंबी जम्हाई ली और आँखे खोलकर अपने पंजों को फैलाने की कोशिश करने लगा। पास में ही माता भेड़िया अपने चार नन्हे-नन्हे बच्चों की पीठ पर अपनी लंबी थूथन रखकर आराम से सो रही थी। चाँद की रोशनी गुफा के अंदर दिखाई देने लगी। शिकार का उचित समय जानकर बापू भेड़िए ने लंबी हुंकार ली और नीचे छलाँग भरने लगा।

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