PAVSA AADHICHA PAUS

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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ଏହି ଇବୁକ୍ ବିଷୟରେ

सामान्य माणसाची नस न् नस पकडत माणसाच्या मनात खोलवर स्वभावांचे विविध कंगोरे दाखविणार्या या दर्जेदार कथा...माणसाच्या मनात खोलवर पाहण्याचा सहजपणा शान्ताबाईच्या लेखनात नेहमीच दिसून येतो. "निसर्गाकडे परत'' आयुष्याकडे बघण्याचा एक वेगळाच दृष्टीकोन दाखवतो. वागण्या-बोलण्यात नक्की खरं-खोटं काय हे कधी कधी समजणं कठीण असतं, असं "भूलभुलय्या'' सांगून जातो. समाजात वावरताना आपल्या स्वभावाचे, व्यक्तिमत्त्वाचे काटे आपण किती सहज खुडून टाकतो ते "गुलाब, काटे, कळ्या'' मधून जाणवत राहतं. अति काम करणं ही एक समस्या होते आहे ते "वर्कोहोलिक'' तीतेनं दाखवून देतो. स्वातंत्र्यदेखील कधीतरी नकोसं वाटतं असं "मनातला किल्ला' दाखवतो. छोट्याा प्रसंगातून लहानपणीच अपयांना, सत्याला कसं सामोरं जायचं याची "ओळख'' होते. मानवी स्वभावाचे असे विविध पौलू दाखवतानाच "चोरबाजार''मधून लेखिका आपल्याला वास्तवाकडे नेते. सामान्य माणसाची नस न् नस पकडत हा "पावसाआधीचा पाऊस'' चिंब आनंदानुभव देतो. 


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