Gurur Se Mukti: Mann Ko Apana Guru Na Banaye

· WOW PUBLISHINGS PVT LTD
4.8
8 reviews
Ebook
304
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About this ebook

लोग अज्ञानतावश गुरु की गुरूता को भूल चुके हैं। इसके मूल में गुरूर यानी अहंकार ही प्रमुख कारण है। गुरूर का वशीभूत मनुष्य नैतिक और सामाजिक जीवन में उपहास का पात्र बनता हुआ अपने अस्तित्त्व और स्थिति के साथ संघर्ष करता रहता है। इस स्थिति में उसे उस गुरु की आवश्यकता होती है, जो उसे उसकी गुरूता का एहसास कराए और उसे सही दिशा दे। इसी परिप्रेक्ष्य में यह पुस्तक “गुरूर से मुक्ति’ अज्ञानता के भॅंवर में गोते लगा रहे लोगों के लिए मील का पत्थर है। इस पुस्तक में सरश्री तेजपारखी के प्रवचनों और जिज्ञासापूर्ण प्रश्नोत्तरों का उद्देश्यपरक संकलन किया गया है।

पुस्तक तीन खण्डों में विभाजित की गई है। जिनमें ज्ञान प्राप्त करनेवाले शिष्यों और गुरु के संबंधों की लक्ष्मण रेखा निर्धारित की गई है। सटीक उदाहरणों द्वारा गुरु के प्रति शिष्यों की शंकाओं का निराकरण से विषयवस्तु रोचक हो गया है। पुस्तक के अंतिम खंड में परिपक्व हो चुके शिष्यों के लिए गुरु के मार्गदर्शन की महत्ता को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। साधक शिष्य को अनुशासित, कर्तव्यनिष्ठ और समाज समर्पित बनाने में गुरु के योगदान की विशेष चर्चा इस पुस्तक में निहित है।

पुस्तक की भाषा सरल, रोचक और प्रभावशाली है। पुस्तक में कही गई बातें रोचक कहानियों द्वारा समझाई गई हैं, जिससे पाठक आसानी से शब्दों के सार ग्रहण कर सकते हैं। यह पुस्तक पाठकों को नैतिक और सामाजिक मूल्यों पर गहरी छाप छोड़नेवाला है।

पुस्तक का मूल उद्देश्य है – लोगों को मन पर विजय प्राप्त कर गुरूरता से मुक्ति दिलाना, जिससे वे सुख और शांतिपूर्ण जीवन जी सकें।

Ratings and reviews

4.8
8 reviews
sunil Kushwah
April 13, 2018
Nice
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Debanjan Paul
June 7, 2019
nice
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A Google user
December 3, 2016
Gurur kuch nahi..tum gand mein dum bandh karo bas..
5 people found this review helpful
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About the author

सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था| इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया| इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया| उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया| इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे| उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें| जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी| जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ| आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अण्डरस्टैण्डिंग)|

सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है| ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है| आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है|’

सरश्री ने दो हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सत्तर से अधिक पुस्तकों की रचना की है| ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल ऍण्ड सन्स इत्यादि|

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