देवी पूजन: Devi Pujan

Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
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देवी पूजन की वास्तिविकता क्या है ? - श्री परमहंस आश्रम शक्तेषगढ़, मीरजापुर में पधारनेवाले भक्तों ने निवेदन किया कि गीता के अनुसार आप कहते हैं कि ब्रह्मा से लेकर यावन्मात्र जगत्, दिति–अदिति की संतानें देवी-देवता, दानव और मानव सभी क्षणभंगुर, दु:खों की खानि और जन्मने-मरने के स्वभाववाले हैं इसलिए भजन एक परमात्मा का ही करना चाहिए; फिर भारत में इतने सारे देवी-देवताओं की पूजा क्यों होती है? दूसरे ने कहा कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी भी काली की पूजा करते थे। किसी ने कहा– आजकल दुर्गा-पूजा का प्रचलन बढ़ रहा है, इसका माहात्म्य बताया जाय। भक्तों की जिज्ञासा पर जनवरी-फरवरी २०१५ के कतिपय दैनिक प्रवचनों से एतद्विषयक पूज्य महाराज जी के विचार प्रस्तुत हैं।

Ratings and reviews

4.6
96 reviews
Jatin Arora
August 27, 2022
time barbaad krne ka aur paap kamane ka muft tareeka..likhne wala banda devi ko bhagwan hi nai maanta btao kaise kaise ajeeb log hai
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the jojo vines
August 4, 2018
I think wonderful BOOK by great saint removing illusions of many minds&society in which we r living
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saurabh singh
February 12, 2021
Wonderful this should be read by every person who believes in sanatan
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About the author

यथार्थ गीता के प्रणेता

योगेश्वर सद्गुरु श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज।।

जीवन परिचय


स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्य की शोध में इतस्ततः विचरण करते तेईस वर्ष की आयु में नवम्बर 1955 ई. को परमहंस स्वामी श्री परमानन्दजी की शरण में आये। श्री परमानन्द जी का निवास चित्रकूट, अनुसूइया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) के घोर जंगल में रहा है, जो हिंसक जीव-वस्तुओं का निवास है। ऐसे निर्जन अरण्य में बिना किसी व्यवस्था के उनका निवास, घोषित करता है कि वे एक सिद्ध महापुरुष थे।

पूज्य परमहंस जी को आपके आगमन के संकेत वर्षों पूर्व ही मिलने लगे थे। जिस दिन आप आये परमहंस जी को ईश्वरीय निर्देश मिला, जिसे भक्तों से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बालक भवसरिता से पार जाने के लिए विकल है, आता ही होगा। आप पर दृष्टि पड़ते ही उन्होंने बताया कि वह बालक यही है। गुरू निर्देशन में चलते हुए, साधना के चरमोत्कर्ष पर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन कर, आप उसी परमात्म भाव को प्राप्त महापुरुष हैं।

आपकी शैक्षिक उपाधियाँ तो कोई भी नहीं, लेकिन सद्गुरु- कृपा से पूर्णता प्राप्त कर मानवमात्र के कल्याण में रत हैं... ‘सर्वभूतहितरतं।’ लेखन को आप साधन-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं किन्तु गीता भष्य ‘यथार्थ गीता’ के प्रणयन में ईश्वरीय निर्देशन ही निमित्त बना।

भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृत्तियाँ शान्त हो चुकी हैं, केवल छोटी-सी एक वृति शेष है, गीताज्ञान के आशय का यथावत् पुनप्रकाशन! पहले तो आपने इस वृत्ति को भजन से काटने का प्रयास किया किन्तु... भगवान के आदेशों का मूर्तरूप है- ‘यथार्थ गीता’। यथार्थ गीता के रचना काल में भाष्य में जहां भी त्रुटि होती, भगवान उसे सुधार देते थे! पूज्यश्री की ‘स्वान्तः सुखाय’ यह कालजवी कृति सर्वान्तः सुखाय हो चली है। आर्यावर्त भारत ही नहीं विश्व के मानवमात्र के कल्याण में रत है, संलग्न है।

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