सोते मगध में जागता सचेतक संतोष सिंह “राख़ ” I राख़ का अस्तित्व सदा ही सामग्रियों से निर्मित व प्रकट हैI ये सामग्रियाँ संतोष को असंतोषीए विग्रहीए विप्लवीए विद्रोही व विस्फोटक बना चुकी हैI विस्फोटक के शरीर में बहता लाल रंग का रक्त हीं सफेद कागज की धरती पर काली स्याही के रूप में बहा है जो किसी सोते को भी जगा सकती हैए यदि वह निस्प्राण न हुआ हो तो ? ” राख़”का विस्फोट कहीं अंगार लगती है, कहीं चिंगारीए कहीं मोमबत्ती, कहीं दीप, कहीं लालटेन . पर मुझे जो विश्रांति चाहिए वह तो सूर्य में होते ऊर्जिय विस्फोटों से हीं मिलेगी I आशा है यह आकांक्षा “राख़ ” से निकली स्याही से ही पूरी होगी I