Chak Chumban चाक चुम्बन

· Zorba Books
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ऊत्तुँग हिमाच्छादित शैल शिखर से निःसृत जलधि से एकाकार होने को प्रसवित भगीरथी की एकलक्ष्यता अनन्त काल से अपने तटों पर स्थित जीवन के प्रतीक अभिलाषियों कोए प्राणिमात्र को आप्यायित कर रही है। उसी आप्यायन से प्रतिफलित जीवन का एक प्रसून मगध में मुकुलित हुआ। यह मुकुलन साधारण परिवेश में असाधारण कल्पना शक्ति के साथ प्रस्फुटित होता जा रहा है। प्रसून का मकरन्द रस प्रेमी भौंरे पा रहे हैं। प्रसून निःसृत परिमल जागृति का सन्देश लिए वितान में उमड़. घुमड़ रहा है। मन.मस्तिष्क में उमड़ता घुमड़न अब अक्षरों का रूप लेता जा रहा है। वाहक तो उसी परम का माध्यम होकर उसी के संकल्पों का पूरक मात्र होता है। वही पूरक संतोष सिंह “राख़” के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है।

सोते मगध में जागता सचेतक संतोष सिंह “राख़ ” I राख़ का अस्तित्व सदा ही सामग्रियों से निर्मित व प्रकट हैI ये सामग्रियाँ संतोष को असंतोषीए विग्रहीए विप्लवीए विद्रोही व विस्फोटक बना चुकी हैI विस्फोटक के शरीर में बहता लाल रंग का रक्त हीं सफेद कागज की धरती पर काली स्याही के रूप में बहा है जो किसी सोते को भी जगा सकती हैए यदि वह निस्प्राण न हुआ हो तो ? ” राख़”का विस्फोट कहीं अंगार लगती है, कहीं चिंगारीए कहीं मोमबत्ती, कहीं दीप, कहीं लालटेन . पर मुझे जो विश्रांति चाहिए वह तो सूर्य में होते ऊर्जिय विस्फोटों से हीं मिलेगी I आशा है यह आकांक्षा “राख़ ” से निकली स्याही से ही पूरी होगी I

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