मूर्तिपूजा और नामजप (Hindi Religious): Murtipooja Aur Naamjap (Hindi Religious)

·
· Bhartiya Sahitya Inc.
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ज्ञानमार्ग कठिन है और ज्ञानमार्ग की साधना बताने वाले अनुभवी पुरुषों का मिलना भी बहुत कठिन है। अत: विवेकमार्ग में चलना कलियुग में बहुत कठिन है। तात्पर्य है कि इस कलियुग में कर्म, भक्ति और ज्ञान-इन तीनों का होना बहुत कठिन है, पर भगवान का नाम लेना कठिन नहीं है। भगवान का नाम सभी ले सकते हैं; क्योंकि उसमें कोई विधि-विधान नहीं है। उसको बालक, स्त्री, पुरुष, वृद्ध, रोगी आदि सभी ले सकते हैं और हर समय, हर परिस्थिति में, हर अवस्था में ले सकते हैं।

Ratings and reviews

4.4
20 reviews
shashi prasad
September 22, 2018
खुद को किताबों के नजदिक बनाए रखने का सबसे बढ़िया माध्यम है।
10 people found this review helpful
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Craig Vista
February 15, 2024
Matchless
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Ulhas Hejib
February 17, 2023
Excellent
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About the author

स्वामी राम सुखदास (1904 - 3 जुलाई 2005) 

भारतवर्ष के अत्यन्त उच्च कोटि के विरले वीतरागी सन्यासी थे। वे गीताप्रेस के तीन कर्णाधारों में से एक थे। अन्य दो हैं- श्री जयदयाल गोयन्दका तथा श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ।
परिचय
स्वामी रामसुखदास जी महाराज का जन्म श्री रूघाराम जी पिडवा ग्राम माडपुरा जिला नागौर के यहाँ माघ शुक्ल त्रियोदशी सन् 1904 मे हुआ। उनकी माता कुन्नीबाई के सहोदर भ्राता श्री सद्दाराम जी रामस्नेही सम्प्रदाय के साधु थे।
4 वर्ष की आयु मे ही माताजी ने राम सुखदासजी को इनके चरणो मे भेट कर दिया। किसी समय स्वामी कान्हीराम जी गांवचाडी ने आजीवन शिष्य बनाने के लिए आपको मांग लिया। शिक्षा दीक्षा के पश्चात वे सम्प्रदाय का मोह छोडकर विरक्त (संन्यासी) हो गये और उन्होंने गीता के मर्म को साक्षात् किया और अपने प्रवचनो से निरन्तर अमृत वर्षा करने लगे। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा संचालित समस्त साहित्य का आप वर्षो तक संचालन करते रहे। आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्‌में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्‌में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.2062 (दि. 3.7.2005) ब्राह्ममुहूर्त में (3 बजकर 40 मिनिट) भगवद्-धाम पधारे।

 

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