श्रीमद्भगवद्गीता के प्रमुख प्रश्न: Geeta Ke Pramukh Prashna

· Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
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श्रीमद्भगवद्गीता के प्रमुख प्रश्न - इस कृति में अनेक प्रश्नों का समाधान किया गया है जो सामाजिक बिखराव के उन्मूलन तथा धार्मिक भ्रान्तियों के निवारण में सहायक हैं। इसमें  धर्म-सिद्धान्त एक, महायोगेश्वर श्रीकृष्ण, यज्ञ, कर्म, गीतोक्त वर्ण-व्यवस्था, वर्णसंकर, ज्ञानयोग एवं निष्काम कर्मयोग, गीतोक्त युद्धस्थल, गीतोक्त युद्ध, सनातन-धर्म (हिन्दू-धर्म), भगवान कर्ता हैं या अकर्ता ?, विप्र, देवता की स्पष्ट व्याख्या दी गई है।

इन प्रश्नों के साथ ही सदियों से चली आ रही अनेकानेक र्धािमक गुत्थियों का पहली बार समाधान प्रस्तुत करनेवाली श्रीमद्भगवद्गीता की यथावत् व्याख्या के लिए देखें – ‘यथार्थ गीता’।

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यथार्थ गीता के प्रणेता

योगेश्वर सद्गुरु श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज।।

जीवन परिचय


स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्य की शोध में इतस्ततः विचरण करते तेईस वर्ष की आयु में नवम्बर 1955 ई. को परमहंस स्वामी श्री परमानन्दजी की शरण में आये। श्री परमानन्द जी का निवास चित्रकूट, अनुसूइया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) के घोर जंगल में रहा है, जो हिंसक जीव-वस्तुओं का निवास है। ऐसे निर्जन अरण्य में बिना किसी व्यवस्था के उनका निवास, घोषित करता है कि वे एक सिद्ध महापुरुष थे।

पूज्य परमहंस जी को आपके आगमन के संकेत वर्षों पूर्व ही मिलने लगे थे। जिस दिन आप आये परमहंस जी को ईश्वरीय निर्देश मिला, जिसे भक्तों से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बालक भवसरिता से पार जाने के लिए विकल है, आता ही होगा। आप पर दृष्टि पड़ते ही उन्होंने बताया कि वह बालक यही है। गुरू निर्देशन में चलते हुए, साधना के चरमोत्कर्ष पर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन कर, आप उसी परमात्म भाव को प्राप्त महापुरुष हैं।

आपकी शैक्षिक उपाधियाँ तो कोई भी नहीं, लेकिन सद्गुरु- कृपा से पूर्णता प्राप्त कर मानवमात्र के कल्याण में रत हैं... ‘सर्वभूतहितरतं।’ लेखन को आप साधन-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं किन्तु गीता भष्य ‘यथार्थ गीता’ के प्रणयन में ईश्वरीय निर्देशन ही निमित्त बना।

भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृत्तियाँ शान्त हो चुकी हैं, केवल छोटी-सी एक वृति शेष है, गीताज्ञान के आशय का यथावत् पुनप्रकाशन! पहले तो आपने इस वृत्ति को भजन से काटने का प्रयास किया किन्तु... भगवान के आदेशों का मूर्तरूप है- ‘यथार्थ गीता’।

यथार्थ गीता के रचना काल में भाष्य में जहां भी त्रुटि होती, भगवान उसे सुधार देते थे! पूज्यश्री की ‘स्वान्तः सुखाय’ यह कालजवी कृति सर्वान्तः सुखाय हो चली है। आर्यावर्त भारत ही नहीं विश्व के मानवमात्र के कल्याण में रत है, संलग्न है।

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