षोडशोपचार पूजन पद्धति - Shodashopchar Pujan Paddhati

· Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
4,5
33 recenzije
E-knjiga
65
Stranica

O ovoj e-knjizi

षोडशोपचार पूजन पद्धति षोडश संस्कार एवं हवन-पद्धति - इस पुस्तक में यह बताया गया है कि एक परमात्मा में श्रद्धा स्थिर कराकर, उस एक परमात्मा का चिन्तन सिखाना ही कर्मकाण्ड है।

Ocene i recenzije

4,5
33 recenzije

O autoru

यथार्थ गीता के प्रणेता - योगेश्वर सद्गुरु श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज।। जीवन परिच

स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्य की शोध में इतस्ततः विचरण करते तेईस वर्ष की आयु में नवम्बर 1955 ई. को परमहंस स्वामी श्री परमानन्दजी की शरण में आये। श्री परमानन्द जी का निवास चित्रकूट, अनुसूइया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) के घोर जंगल में रहा है, जो हिंसक जीव-वस्तुओं का निवास है। ऐसे निर्जन अरण्य में बिना किसी व्यवस्था के उनका निवास, घोषित करता है कि वे एक सिद्ध महापुरुष थे।


पूज्य परमहंस जी को आपके आगमन के संकेत वर्षों पूर्व ही मिलने लगे थे। जिस दिन आप आये परमहंस जी को ईश्वरीय निर्देश मिला, जिसे भक्तों से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बालक भवसरिता से पार जाने के लिए विकल है, आता ही होगा। आप पर दृष्टि पड़ते ही उन्होंने बताया कि वह बालक यही है। गुरू निर्देशन में चलते हुए, साधना के चरमोत्कर्ष पर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन कर, आप उसी परमात्म भाव को प्राप्त महापुरुष हैं।


आपकी शैक्षिक उपाधियाँ तो कोई भी नहीं, लेकिन सद्गुरु- कृपा से पूर्णता प्राप्त कर मानवमात्र के कल्याण में रत हैं... ‘सर्वभूतहितरतं।’ लेखन को आप साधन-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं किन्तु गीता भष्य ‘यथार्थ गीता’ के प्रणयन में ईश्वरीय निर्देशन ही निमित्त बना।


भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृत्तियाँ शान्त हो चुकी हैं, केवल छोटी-सी एक वृति शेष है, गीताज्ञान के आशय का यथावत् पुनप्रकाशन! पहले तो आपने इस वृत्ति को भजन से काटने का प्रयास किया किन्तु... भगवान के आदेशों का मूर्तरूप है- ‘यथार्थ गीता’। यथार्थ गीता के रचना काल में भाष्य में जहां भी त्रुटि होती, भगवान उसे सुधार देते थे! पूज्यश्री की ‘स्वान्तः सुखाय’ यह कालजवी कृति सर्वान्तः सुखाय हो चली है। आर्यावर्त भारत ही नहीं विश्व के मानवमात्र के कल्याण में रत है, संलग्न है।


श्री हरी की वाणी वीतराग परमहंसो का आधार आदि शास्त्र गीता – संत मत – १०-२-२००७ विश्व हिन्दू परिषद् - विश्व हिन्दू सम्मेलन दिनाक १०-११-१२-१३ फरवरी २००७ के अवसर पर अर्ध कुम्ब २००७ प्रयाग भारत में प्रवासी एवं अप्रवासी भारतीयों के विश्व सम्मेलन के उद्गाटन के अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद् ने ग्यारहवी धर्म संसद में पारित गीता हमारा धर्म शास्त्र है प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य में गीता को सदेव से विधमान भारत का गुरु ग्रन्थ कहते हुए यथार्थ गीता को इसका शाश्वत भाष्य उद्घोषित किया तथा इसके अंतर्राष्ट्रीय मानव धर्म शास्त्र की उपयोगिता रखने वाला शास्त्र कहा | – अशोक सिंहल - अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष.


श्री काशीविद्व्त्परिषद – भारत के सर्वोच्च श्री काशी विद्व्त्परिषद ने १-३-२००४ को “श्रीमद भगवद्गीता” को अदि मनु स्मृति तथा वेदों को इसी का विस्तार मानते हुए विश्व मानव का धर्म शास्त्र और यथार्थ गीता को परिभाषा के रूप में स्वीकार किया और यह उद्घोषित किया की धर्म और धर्मशास्त्र अपरिवर्तनशील होने से आदिकाल से धर्मशास्त्र “श्रीमद भगवद्गीता” ही रही है | - गणेश दत्त शास्त्री – मंत्री और आचार्य केदारनाथ त्रिपाठी दर्शन रत्नम वाचस्पति – अध्यक्ष 


विश्व धर्म संसद – World Religious Parliament

३-१-२००१ – विश्व धर्म संसद में विश्व मानव धर्मशास्त्र “श्रीमद भगवद्गीता” के भाष्य यथार्थ गीता पर परमपूज्य परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज जी को प्रयाग के परमपावन पर्व महाकुम्भ के अवसर पर विश्वगुरु की उपाधि से विभूषित किया.

२-४-१९९७ – मानवमात्र का धर्मशास्त्र “श्रीमद भगवद्गीता” की विशुध्द व्याख्या यथार्थ गीता के लिए धर्मसंसद द्वारा हरिद्वार में महाकुम्ब के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में परमपूज्य स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज को भारत गौरव के सम्मान से विभूषित किया गया.

१-४-१९९८ – बीसवी शताब्दी के अंतिम महाकुम्भ के अवसर पर हरिद्वार के समस्त शक्रचार्यो महामंद्लेश्वारों ब्राह्मण महासभा और ४४ देशों के धर्मशील विद्वानों की उपस्थिति में विश्व धर्म संसद द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में पूज्य स्वामी जी को “श्रीमद भगवद्गीता” धर्मशास्त्र (भाष्य यथार्थ गीता) के द्वारा विश्व के विकास में अद्वितीय योगदान हेतु “विश्वगौरव” सम्मान प्रदान किया गया | - २६-०१-२००१ – आचार्य प्रभाकर मिश्रा – Chairman (Indian Region).


माननीय उच्च न्यायालय – इलाहाबाद का एतहासिक निर्णय

माननीय उच्चन्यायालय इलाहाबाद ने रिट याचिका संख्या ५६४४७ सन २००३ श्यामल रंजन मुख़र्जी वनाम निर्मल रंजन मुख़र्जी एवं अन्य के प्रकरण में अपने निर्णय दिनांक ३० अगस्त २००७ को “श्रीमद भगवद्गीता” को समस्त विश्व का धर्मशास्त्र मानते हुए राष्ट्रीय धर्म्शात्र की मान्यता देने की संस्तुति की है | अपने निर्णय के प्रस्तर ११५ से १२३ में माननीय न्यायालय में विभिन गीता भाष्यों पर विचार करते हुए धर्म, कर्म, यज्ञ, योग आदि को परिभाषा के आधार पर इसे जाति पाति मजहब संप्रदाय देश व काल से परे मानवमात्र का धर्मशास्त्र माना जिसके माध्यम से लौकिक व परलौकिक दोनों समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है |

For more details- Visit: http://yatharthgeeta.com/–

Ocenite ovu e-knjigu

Javite nam svoje mišljenje.

Informacije o čitanju

Pametni telefoni i tableti
Instalirajte aplikaciju Google Play knjige za Android i iPad/iPhone. Automatski se sinhronizuje sa nalogom i omogućava vam da čitate onlajn i oflajn gde god da se nalazite.
Laptopovi i računari
Možete da slušate audio-knjige kupljene na Google Play-u pomoću veb-pregledača na računaru.
E-čitači i drugi uređaji
Da biste čitali na uređajima koje koriste e-mastilo, kao što su Kobo e-čitači, treba da preuzmete fajl i prenesete ga na uređaj. Pratite detaljna uputstva iz centra za pomoć da biste preneli fajlove u podržane e-čitače.

Још од аутора Swami Adgadanand

Сличне е-књиге