Lee Gita La (Hindi): Leela Aur Gita Ka Anokha Sangam Aur Prarambh

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मन के दोराहे के लिए युक्ति-ग्रे से ग्रेट गीता
लीला के बीच गीता

‘क्या करूँ क्या ना करूँ’ के दोराहे पर खड़ा अर्जुन, जब मोह में फँस चुका था तब उसे गीता का परम ज्ञान मिला। फिर वह न सिर्फ इस संसार रूपी लीला में विजयी हुआ बल्कि उसने मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य भी जान लिया।

आज के अर्जुन आप हैं जो रोज किसी न किसी समस्या रूपी युद्ध में घिर जाते हैं। लेकिन लीला में छिपी गीता में वह समझ है, जो आपसे सही समय पर, सही राह का चुनाव करवाती है। बस जरूरत है ज्ञान के इस महासागर में मनन की मथनी घुमाकर उससे अपनी गीता बाहर निकालने की। लीगीताला में आप परम प्रेम, आनंद, मौन से जीवन जीने की कला सीखेंगे। जिसमें आप जानेंगे कि

* जीवन की समस्याओं (युद्ध) को किस दृष्टिकोण से देखें?
* किसी भी परिस्थिति (दुविधा) में सही निर्णय कैसे लें?
* मन की कौन सी रूकावटें हमें सही निर्णय लेने से रोकती हैं, उन्हें कैसे दूर करें?
* अपने उचित कर्तव्यों को पहचानकर कैसे बिना तनाव के उनका निर्वाह करें?
* कर्म करने और अकर्मता का सही तरीका एवं समझ क्या है?
* कर्म से कैसे बंधन बनते हैं और इन बंधनों से कैसे निकला जा सकता है?
* मृत्यु क्या है, क्या मृत्योपरांत भी जीवन है।
* संसार में अपने सभी कर्तव्य करते हुए सुखी, शांत और आनंदित जीवन कैसे जीएँ, साथ ही ईश्वर को भी कैसे प्राप्त करें।

आपको गीता सुनानेे के लिए कृष्ण (अंदर) सदैव तत्पर हैं, उन्हें तो सिर्फ आपके अर्जुन बनने का इंतजार है। तो आइए, पढ़ें यह ग्रंथ जिसके पहले दो अध्याय आपकी सेवा में खुल रहे हैं।

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Acerca del autor



सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।

उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।

सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’

सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।

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